________________ पाठ-संपादन-जी-७१-७३ 223 2182. संजमकरणुज्जोया', णिप्फादग णाण-दसण-चरित्ते। 'दीहो य'२ वुड्डवासो, वसहीदोसेहि य विमुक्को॥ 2183. दीहो त्ति वुड्डवासो, थेरा ण तरंति जाहे कातुं जे। अब्भुज्जतमरणं वा, अहवा अब्भुज्जतविहारं // 2184. दीहं च आउगं तू, वुड्डावासं तयो वसे। उग्गमादीहिं दोसेहिं, विप्पमुक्काएँ वसहीए॥ 2185. मोत्तुं जिणकप्पठितिं, जा मेरा एस वण्णिता हेट्ठा। एसा तु दुपदजुत्ता, होति ठिती थेरकप्पम्मि // -- 2186. दुपदं ती उस्सग्गो, अववादो चेव होंति दोण्णेते / - एतेहिं होति जुत्तो, नियमा खलु थेरकप्पो तु // 2187. पलंबाउ जाव ठिती, उस्सग्गऽववाइयं करेमाणो। अववादे उस्सग्गं, आसायण दीहसंसारो // 2188. अह उस्सग्गेऽववायं, आयरमाणो विराधगो होति। ' अववादे पुण पत्ते, उस्सग्गणिसेवगो भइओ। 2189. कह होती भइयव्वो?, संघतणधितीजुतो' समग्गो तु। एरिसगो अववाए, उस्सग्गणिसेवगो सुद्धो॥ . 2190. इतरो उ. विराहेती, असमत्थो जेण परिसहे सहितुं / धितिसंघतणेहिं तू, एगतरेणं व सो हीणो॥ 2191. इति सामाइयमादी, छव्विह कप्पद्रुिती समक्खाता। विरियं दारं अहुणा, इणमो वोच्छं समासेणं // 2192. परिणत गीतत्था तू, विपक्खभूता अपरिणता होति। __ कडजोगी ऽकयजोगी, चतुत्थमादीहिं णातव्वा // 2193. अकडज्जोगा ऽजोग्गवियचतुत्थादीहिँ होंति णातव्वा। धितिसंघयणादीहिं, तरमाणा होंति णातव्वा / / .. - 1. “ज्जोवा (बृ 6485, ता, ब)। 2. दीहाउ (बृ)। 3. बूढावा (ता, ब, ला)। 4. "कप्पस्स (बृ६४८६)। 5. एतेण (ब)। 6. 'बादी (बृ 6487) / 7. "धितिजुत्तो (पा)। 8. अ (ब)।