________________ 170 जीतकल्प सभाष्य ' 1630. जम्हा एते दोसा, अतिरित्ते तेण होति चतुलहुगा। आवत्ती दाणं पुण, आयामं होति णातव्वं / 1631. दोसा अतिप्पमाणे, तम्हा भोत्तव्व होति केरिसगं?। भण्णति सुणसू जारिस, भोत्तव्वं होति साहूहिं // 1632. हिताहारा मिताहारा, अप्पाहारा य जे नरा। ण ते विज्जा तिगिच्छंति', अप्पाणं ते तिगिच्छगा // 1633. हितमहितं होति दुहा, इह परलोगे य होति चउभंगो। इहलोग हितं ण परे, किंचि परे णेय इहलोगे॥ 1634. किंचि हितमुभयलोगे, णोभयलोगे' चतुत्थओ भंगो। पढमगभंगो तहियं, जे दव्वा होंति अविरुद्धा॥ 1635. जह खीर-दहि-गुलादी, अणेसणिज्जा व रत्तदुढे वा। भुजंते होति. हितं, इहइं ण पुणाइँ परलोगे॥ 1636. अमणुण्णेसणसुद्धं, परलोगहितं ण होति इहलोगे। पत्थं एसणसुद्धं, उभयहितं होति णातव्वं // 1637. अहितोभयलोगम्मी, अपत्थदव्वं अणेसणिज्जं च। अहवा वि रत्तदुट्ठो, भुंजति एत्तो मितं वोच्छं / / 1638. अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुज्जा दवस्स दो भागे। वायुपवियारणट्ठा', छब्भागं ऊणगं कुज्जा / / 1639. सीतो उसिणो साहारणो य कालो तिधा मुणेतव्वो। एतेसुं तीसुं पी, आहारे होतिमा मत्ता' / 1640. एगो दवस्स भागो, अवट्ठितो भोयणस्स दो भागा। वटुंति व हायंति व, दो दो भागा तु एक्केक्के / 1. चिगि (ला, ब, मु)। 2. चिगि (मु, ला), पिनि 313, ओनि 578 / 3. x (ता)। 4. एत्थं (ला, ब)। 5. वातप (पिनि 313/2, व्य 3701) / 6. x (ता, ब)। 7. पिनि (313/3) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है साहारणम्मि काले, तत्थाहारे इमा मत्ता। 8. पिनि 313/5 /