________________ 168 जीतकल्प सभाष्य 1606. मच्छत्थाणी साहू, मंसत्थाणी य भत्तपाणं तु। रागादीण समुदयो, मच्छियथाणी मुणेतव्वो॥ 1607. जह ण छलितो तु मच्छो, उवायगहणेण एव साधू वि। अप्पाणमप्पण च्चिय, अणुसासे भुंजमाणो उ॥ 1608. बायालीसेसणसंकडम्मि गेण्हंतो जीव! ण सि' छलितो। एण्हिं जह ण छलिज्जसि, भुंजतो राग-दोसेहि // 1609. घासेसणा तु भावे, होति पसत्था य अप्पसत्था य। अपसत्था पंचविधा, तव्विवरीता पसत्था तु // 1610. संजोइय अतिबहुयं, संगाल' सधूमगं अणट्ठाए। पंचविधा अपसत्था, तव्विवरीता पसत्था तु॥ 1611. संजोयणेत्थ दुविधा, दव्वे भावे य दव्वें बहिअंतो। भिक्खं चिय हिंडता, संजोए बाहिरेसा तु॥ 1612. खीर-दहि-कट्टरादिण, लंभे गुड-सालि-कूर-घतमादी। जाइत्ता संजोगे, हिंडंतंतो अतो वोच्छं / 1613. अंतो तिह पायम्मी', लंबण वयणे य होति बोद्धव्वं। . जं जं रसोवकारिं, संजोययए तु तं पाए / 1614. वालुंक'-वडग-वाइंगणादि संजोएँ लंबणेण समं / वयणम्मि छोढु' लंबण, तो सालणगं छुभे पच्छा // 1615. दव्वम्मि एस संजोयणा तु संजोएँ जं तु दव्वाई। रसहेतुं तेहिं पुण, संजोयण होति भावम्मि / 1616. संजोएंतो दव्वे, राग-दोसेहिँ अप्पगं जोए। राग-दोसणिमित्तं, संजोययए तु तो कम्मं // 1617. कम्मेहिंतो य भवं, संजोययए'. भवा तु दुक्खेणं / संजोययए अप्पं, एसा संजोयणा भावे॥ 1. गहणम्मि (पिनि 302/5, पंव 354, ओनि 545) / 6. पादम्मि (पा, ता)। 2. x (ता), हु (पिनि, पंव, ओनि)। 7. वालंक (ब)। 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 53 / 8. “णेणं (ला)। 4. पिनि 303 / 9. छोढुं (ला)। 5. सेंगाल (ब), इंगाल (पिनि 303/1) / 10. संजोए य (ता)।