________________ 138 जीतकल्प सभाष्य 1273. एत्थ तु मासलहुं तू, आवत्ती दाण' होति पुरिमर्छ। इय मालोहड भणितं, अच्छेज्जं अहुण वोच्छामि // 1274. 'तिविधं पुण अच्छेज्जंग, पभू य सामी य तेणए चेव। 'एक्केक्के चतुलहुगा, दाणं पुण एत्थमायाम" || 1275. अणिसिटुं पि य तिविधं, साधारण चोल्लगे य जड्डे य। तिविधे वि य अणिसट्टे, चतुलहुगा दाणमायामं // 1276. साहारणमणिसटुं, दाइयमादीण जं तु होज्जाहि। खीरे आपण संखडि, दिटुंतो गोट्ठिभत्तेणें // 1277. सो चोल्लगो वि दुविधो, छिण्णमछिण्णो समासतो होति। परिछिण्णं चिय दिज्जति, एसो छिण्णो मुणेतव्वो॥ 1278. अच्छिण्णपरीमाणो, सो वि णिसट्टो तहेव अणिसट्टो। णीसट्ठो तेसिं चिय, णेतूण समप्पितो जो तु॥ 1279. आणेति भुत्तसेसं, जं गहितं एय होति अणिसटुं। छिण्णम्मि चोल्लगम्मी, कप्पति घेत्तुं णिसट्टेतं // 1280. अणिसट्ठमणुण्णातं, कप्पति घेत्तुं तहेव अद्दिटुं। चोल्लग अणिसट्टेयं, जड्डणिसटुं अतो वोच्छं // 1281. रायकुलातो भत्तं, णीतं जड्डुस्स तं ण कप्पति तु / णिवपिंडमंतरायं", अदिण्णगहणादिदोसाय॥ 1282. जड्डो व पदोसगतो, परिपाडे वसहिमादि भंजेज्जा। डोंबस्स संतिओ वि हु, अद्दिट्ठो कप्पती घेत्तुं // 1283. अणिसट्ठ भणितमेतं, एत्तो अण्झोयरं पवक्खामि / अहियं उदरं अज्झोयरो तु जं सगिहमेगम्मि // 1284. अहिगं तु तंदुलादी, छुब्भति अज्झोयरो उ सो तिविधो। जावंतिग पासंडे, साधू अज्झोयरे चेव // 1. दाणे (ला)। 2. अच्छेज्ज पि य तिविधं (पिनि 172) / 3. अच्छिज्जं पडिकुटुं, समणाण ण कप्पते घेत्तुं (पिनि)। 4. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 39 / 5. "टे य (ब)। 6. तु. पिनि 184 / 7. "राइय (ब), राया (मु)।