SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104 जीतकल्प सभाष्य 919. आभोगे जाणंतो, तणुगो थोवे तु होति णातव्वो। तं पुण करेज्ज कप्पट्ठ-सेज्जतर-सण्णिमादिसु' वा॥ 920. एमादी णेहाऊ, जं कत कप्पट्ठगादि आभोगा। तस्स तु पायच्छित्तं, मिच्छक्कारो पडिक्कमणं // 921. तणुगो णेहो भणितो, भय सत्तविहं इमं तु वोच्छामि। इह परलोगाऽऽदाणे, अकम्ह आजीवियऽसिलोगे॥ 922. मरणभयं सत्तमगं, एतेसि समासतो विभागों इमो'। मणुओ मणुयस्सेव तु, देवो देवस्स तिरि तिरिए // 923. बीभेति सजातीए, इहलोगभए य होति बोद्धव्वं / परलोगभयं विसरिस, जह मणुओ बी. तिरिदेवे॥ 924. धणमादाणं भण्णति, तब्भय चोरादियाण जं बीभे। तस्सेव * य रक्खट्ठा, वइ-पागारादि जं कुणति॥ 925. अणिमित्त अकम्हभयं, ण वि किंची पासती तह वि बीभे। अडवीए रातीय व, आजीवभयं जहा अहणो॥ 926. दुक्कालो आदेसो, कह जीवी हं ति एस चिंतेति। मरणभयं सिद्ध चिय, मरणमिति महब्भयं जह तु॥ 927. असिलोगो त्ति इ. अयसो, जइ एव करिस्स होहिती अयसो। असिलोगभयं एतं, वेदणभय होति सीतादी। 928. सत्तविधं भयमेतं, एतेसु तु वट्टितं तु जं तणुगे। तस्स विसोहिट्ठाणं, मिच्छक्कारो पडिक्कमणं // 929. सोगं आभोगेण वि, चिंतादि करेंति' विप्पयोगम्मि। तस्स तु पायच्छित्तं, मिच्छक्कारो पडिक्कमणं // 930. आभोगमणाभोगे, संवुडमस्संवुडे य अहसुहुमे। पंचविधो बाउसिओ, सुहुमाभोगेण पगतेत्थं // 1. "माइ (ता, ब)। 2. भइ (पा, मु)। 3. इणमो (ता)। 4. 4 (पा, ब, ला)। ५.ई (ता, पा, ब, ला)। 6. यु (ता, पा, ब)। 7. करते (ब)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy