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________________ आयुर्वेद यद्यपि लोग शंका करते हैं कि इस देह से च्युत होकर हम किसी-न-किसी रूप में पुनः इस मृत्यु लोक में आएँगे या नहीं। तथापि विद्वानों ने युक्तियों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि पंच महाभूत और आत्मा की समष्टि होने से गर्भ की उत्पत्ति होती है, और आत्मा का परलोक के साथ सम्बन्ध है / अतएव पुनजन्म को माने बिना काम नहीं चल सकता / पुनर्जन्म को स्वीकार कर लेने पर धर्म-बुद्धि का अवलम्ब करना चाहिए; क्योंकि पारलौकिक एषणा का अनुसरण उसी के लिए आवश्यक है / जो व्यक्ति इन तीनों के अनुकूल चल सकता है, वही इस मृत्यु-लोक में नीरोग, सबल और स्वस्थ शरीर से दीर्घायु प्राप्त करके परलोक में स्वर्ग-सुख का आनन्दानुभव कर सकता है। आहार, उत्तम निद्रा और इन्द्रिय-संयम ये तीनों शरीर को धारण करने वाले तीन स्तम्भ हैं। इन तीनों का युक्तिपूर्वक अनुसरण करने से जीवन पर्यन्त शरीर नीरोग और बलवान रहता है। किन्तु जिस प्रकार इनका उचित व्यवहार करके हम नीरोग और सुखी रहते हैं, उसी प्रकार अनुचित उपयोग करके दुख, रोग और कष्ट का भी अनुभव करते हैं। इस प्रकार के रोग तीन भागों में विभक्त किए जा सकते हैं। कहा हैस्वाभाविकागन्तुककायिकान्तरा रोगा भवेयुः किल कर्मदोषजाः। . तच्छेदनाथं दुरितापहारिणः श्रेयोमयान्योगवरान्नियोजयेत् // स्वाभाविक, आगन्तुक और कायिक ये तीन प्रकार के रोग
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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