________________ वनस्पति-विज्ञान 166 तथा पित्त, दाह, शूल, अतीसार, वात-पित्तज्वर, वमन, विष, अजीर्ण, त्रिदोष, हृद्रोग, रक्तविकार, कुष्ठ, खुजली, श्वास, कृमि, गुल्म, उदररोग, व्रण, कफ और वातनाशक कहा गया है / गुण-लघुपाठा तिक्तरसा विषघ्नी कुष्ठकण्डनुत् / छर्दिहृद्रोगगरजित् त्रिदोषशमनी मता ॥-रा० नि० लघुपाठा-रस में तीता; विष, कुष्ठ, खुजली, वमन, हृद्रोग, सर्पविष और त्रिदोषनाशक है। विशेष उपयोग (1) शोथ पर-पाठा की जड़ घिसकर लगाना चाहिए। (2) ज्वर में-पाठा के पंचांग का काढ़ा पीएँ। (3) आँख आने पर-पाठा पीसकर और गरम करके लगाना चाहिए। इन्द्रायण __सं० इन्द्रवारुणी, हि० इन्द्रायण, ब. राखालशशा, म० कांवडल, गु० इन्दरवाणी यूँ , क० हामेक्के, तै० एतिपुच्छा, अ० हंजल, फा० खुर्यजा तल्ख, अँ० कोलोसिंथ-Colo Cynth, और लै० सिटलस कोलोसिंथिस-CitrullusiColocynthis. विशेष विवरण- इसका वृक्ष प्रायः खारी भूमि में होता है / इसके फल छोटे, काँटेदार और लाल रंग के होते हैं / इसका फूल पीले रंग का होता है / पत्ते लम्बे; किन्तु बीच-बीच में कटे