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________________ असगंध सं० अश्वगंधा, हि० असगंध, ब० अश्वगंधा, म० आसकंद, गु० आखसंध, क० आसादु अंगुर, तै० पिल्लिांगा, फा० मेहेमन वररी, अँ० विंटरचेरी, और लै० फाइसेलिस सोम्निफेरा-Physals Somnifera. विशेष विवरण-असगंध का वृक्ष होता है / इसके फल पनसोखा के समान होते हैं। इस पेड़ के नीचे छोटी मूली के समान सफेद कन्द होता है। उसे निकाल कर सुखा लेते हैं। उसे असगंध कहते हैं। इसका वृक्ष खानदेश, नासिक और बरार आदि में विशेष होता है। इसकी ऊँचाई अधिक-से-अधिक दो हाथ तक होती है। यह चार-पाँच वर्ष तक हरा रहता है / इसके ऊपर चने के समान फल लगते हैं। उस फल के भीतर छोटे-छोटे बीज निकलते हैं / असगंध बड़ी उपयोगी वस्तु है / इसका प्रयोग वीर्यवर्द्धक और शक्तिवर्द्धक औषध के लिए होताहै। गुण-अश्वगन्धो जराव्याधिनाशकस्तुवरः स्मृतः / धातुवृद्धिकरः किञ्चित्कटुको बलदः स्मृतः // कान्तिप्रदश्च संप्रोक्तस्तथा च मधुगन्धिकः / शरीरपुष्टिकरी च वृष्यश्चोष्णो लघुः स्मृतः // वातं क्षयं श्वासकासौवणं श्वेतं च कुष्ठकम् / कफविषकृमीन्शोथं तथा चैव क्षतक्षयम् // कण्डूं नाशयतीत्येवं पूर्वाचायनिरूपितम् / -नि० 20
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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