________________ 152 वनस्पति-विज्ञान है / इसकी डाल तीन धारवाली होती है / इसका पत्ता मसलकर संघने से ककड़ी-जैसी गंध मालूम पड़ती है। . गुण-आखुकर्णी कटुस्तिक्ता कषाया शीतला लघुः / विपाके कटुका मूत्रकफामयकृमिप्रणुत् ॥-भा० प्र० मूसाकानी-कड़वी, तीती, कषैली, शीतल, हलकी, पाक में कटु तथा मूत्रविकार, कफरोग और कृमिनाशक है। . गुण-आखुकर्णी वृहत्युक्ता शीतला मधुरा स्मृता / __ रसबन्धकरी नेत्र्या रसायन्यथ शूलनुत् ॥-नि० र० बड़ी मुसाकानी-शीतल, मधुर, पारद को बाँधने वाली, नेत्रों को हितकारी, रसायन और शूलनाशक है / विशेष उपयोग (1) सिर की गर्मी पर-मूसाकानी का चूर्ण सूंघना चाहिए। - (2) गर्मी की सूजन पर-मूसाकानी का चूर्ण और जौ का आटा पानी में घोलकर लेप करना चाहिए। (3) कान बहने पर-मूसाकानी का रस छोड़ें। (4) कान में फोड़ा हो तो-मूसाकानी का रस छोड़ें। . (5) पेट की गर्मी, कृमि और मूर्छा पर-मूसाकानी का रस पीना चाहिए। (6) अपस्मार में मूसाकानी का रस गरम करके पीएँ। (7) सर्पविष में-मूसाकानी का रस पीना चाहिए / (8) दाँतों के कृमि में-मूसाकानी के चूर्ण से दाँतों