________________ मुंडी भंगरैया का रस शरीर में लेप कर लेना चाहिए / नियमित रूप से छःमास तक ऐसा करने से अतिशय बढ़ा हुआ मेद नष्ट हो जाता है। (8) मुंह के छालों पर-भंगरैया का पत्ता सुरती की भाँति मुँह में रखकर कूचना और थूकना चाहिए। (8) अग्निमांद्य और पाण्डुरोग में मंगरैया का पंचांग छाया में सुखाकर तब उसका चूर्ण बनाया जाय और समभाग मिश्री मिलाकर चार तोला प्रति दिन सेवन किया जाय / (10) स्वरभंग में-भंगरैया का रस और घीगरम कर पीएँ। (11) बालों को काला करने के लिए-महाशृंगराज तैल लगाना चाहिए। मुंडी सं० मुंडी, हि० मुंडी, ब० मुंडिरी, म० बरसवोडी, गु० मुंडी, क० बोडतर, ता० कोट्टक, तै० वोडसर पुचेटु, अ० कमादरयुस, और लै० स्फिरेंथस इंडिकस-Sphoeranthus Indicus. विशेष विवरण-यह तृण के समान फूस - जाति की एक वनस्पति है। फल गोल-गोल धुंडी के सदृश होते हैं / यह छोटी और बड़ी-दो जाति की होती है। छोटी जाति वाली का पेड़ प्रायः एक वित्ता लम्बा होता है, और बड़ी का पेड़ लगभग एक हाथ ऊँचा होता है। यह लता के समान घना फैलता है।