________________ वनस्पति-विज्ञान 74. (8) हाथ, पैर एवं सिर की दाह---सफेद दूब पीस कर लगाने से शान्त होती है। कचनार स० काञ्चनार, हि० कचनार, ब० कांचन, म० कोरल, गु० चम्पाकाटी, क० कोचाले कचनार, तै० देवकाञ्चन, और लै० qeliz afegitei---Banheria Vasiagata. विशेष विवरण-इसका पेड़ भारतवर्ष में प्रायः सर्वत्र होता है / यह लता के रूप में भी होता है / यह वृक्ष अपनी कली के लिए प्रसिद्ध है / इसके कली की तरकारी तथा आचार बनाया जाता है / इसके फूलों में मीठी गन्ध होती है / फूलों के गिर जाने पर लम्बी-लम्बी फलियाँ लगती हैं। लाल, सफेद तथा पीले रंगभेद से यह तीन प्रकार की होती हैं / इसकी लकड़ी का रंग लाल होता है, और इससे रंग बनाने का काम लिया जाता है। लाल फूल वाले को ही कांचनार कहते हैं। कचनार की जाति के बहुत पेड़ होते हैं / एक प्रकार का कचनार कुराल या कंदला कहा जाता है। इसकी कोंद 'सेम की गोंद' या 'सेमलागोंद' के नाम से प्राप्त होती है / यह कतीरे के भाँति होती है। परन्तु पानी में नहीं घुलती। एक प्रकार का कचनार वनराज कहा जाता है / इसके छाल के रेशों की रस्सी बनती है। सफेद फूलवाला कचनार