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________________ प्रकीर्णकों का पाठ निर्धारण : 83 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण (अ) महापच्चक्खाण की गाथा में मात्राएँ 14 + 12, 14 + 12 हैं, आउर- . पच्चक्खाण में 14 + 12 एवं 14+ 13 हैं / मूलाचार में 13+ 12 एवं 14+ 12 हैं। अतः यह गाथा-छन्द नहीं है। (ब) महापच्चक्खाण में 8+ 8 एवं 8+ 9 वर्ण हैं, आउरपच्चक्खाण और मूलाचार में भी ऐसी ही वर्ण व्यवथा है / अतः यह पद्य अनुष्टुप छन्द में मिलता है / 2. भाषा की दृष्टि से विश्लेषण मूलाचार की गाथा में रायबंध' शब्द में राय' शब्द 'रागं' की अपेक्षा परवर्ती है जबकि 'पदोसं' शब्द पओसं' की अपेक्षा और रदिमरदिं' 'रइमरई' या रइं अरइं' की अपेक्षा प्राचीन है / इस दृष्टि से इस गाथा का मूल पाठ निम्न प्रकार से रहा होगा, जो परवर्तीकाल में विभिन्न ग्रंथों में बदलता गया. रागं बंधं पदोसं च हरिसं दीणभावयं / उस्सुगत्तं भयं सोगं, रतिमरतिं च वोसरे / / इस गाथा में मूल ‘रतिमरति' का महापच्चक्खाण में महाराष्ट्री रूप 'रइमरइं' बन गया हो और मूलाचार में शौरसेनी रूप 'रदिमरदिं' बन गया हो, ऐसा लगता है / (6) महापच्चक्खाण-पइण्णयं की गाथा 8 का पाठ इस प्रकार है : निंदामि निंदणिज्जं, गरहामि य जं च मे गरहणिज्जं / 'आलोएमि य सव्वं, जिणेहिं जं जं च पडिकुटुं / / आउरपच्चक्खाण की गाथा 32 में दूसरे पाद के परवर्ती भाग का पाठ महापच्चक्खाण से अलग है, वह इस प्रकार है / / सब्भिंतर बाहिरं उवहिं / / मूलाचार की गाथा 55 का पाठ इस प्रकार है :जिंदामि णिंदणिज्ज गरहामि य जं च मे गरहणीयं / . आलोचेमि य सवं, सब्भंतरबाहिरं उवहिं / / 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण तीनों ग्रंथों की यह गाथा गाथा-छन्द में है / महापच्चक्खाण में जिणेहिं' के बदले में 'जिणेहि' (4 मात्रिक गण) पाठ होना चाहिए जो छन्द की दृष्टि से ही नहीं परन्तु भाषा की प्राचीनता की दृष्टि से भी उपयुक्त है। 2. भाषा की दृष्टि से विश्लेषण . मूलाचार में 'निंदामि' और 'निंदणिज्ज' के बदले में 'जिंदामि' और 'जिंदणिज्जं' पाठ भाषिक दृष्टि से परवर्ती काल के हैं और महापच्चक्खाण एवं आउरपच्चक्खाण में
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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