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________________ प्रकीर्णकों का पाठ निर्धारण : 79 2. अर्थ की दृष्टि से विश्लेषण अर्थ की दृष्टि से मूलाचार के 'जिणवरसहस्स' पद की उपयुक्तता क्या होगी, यह समझ में नहीं आता है / * अतः महापच्चक्खाण की गाथा ही उपयुक्त लगती है / (2) महापच्चक्खाण-पइण्णयं की गाथा 2 का पाठ इस प्रकार है : सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो / सदहे जिणपत्रत्तं, पच्चक्खामि य पावगं / / आउरपच्चक्खाण की गाथा 17 का भी यही पाठ है। मूलाचार की गाथा 37 का पाठ इस प्रकार है : सव्वदुक्खप्पहीणाणं, सिद्धाणं अरहदो णमो / सहहे जिणपण्णत्तं, पच्चक्खामि य पावगं / / . 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण (अ) महापच्चक्खाण की गाथा की मात्राएं 14+14 एवं 13 + 13 हैं / (ब) आउरपच्चक्खाण की भी यही स्थिति है। (स) मूलाचार में भी यही स्थिति है / अतः यह.गाथा छन्द नहीं है। वर्गों की दृष्टि से हरेक ग्रंथ की गाथा में 8+ 9 एवं 8+ 8 वर्ण हैं, अतः यह अनुष्टप छन्द में है जिसमें कभी-कभी किसी पद में 8 के बदले में 9 वर्ण भी होते हैं जो प्राचीनता का एक लक्षण है। 2. भाषा की दृष्टि से विश्लेषण - महापच्चक्खाण और आउरपच्चक्खाण में अरहओ, नमो, और पत्रत्तं' शब्दों का प्रयोग है जबकि मूलाचार में उनके स्थान पर अरहदो, णमो और पण्णत्तं' शब्दों का प्रयोग ऐसा प्रतीत होता है कि मूलरूप में प्राचीन गाथा की रचना इस प्रकार रही होगी, परवर्ती काल में इन ग्रंथों में भाषिक दृष्टि से उसका पाठ बदल गया है सव्वदुक्खपहीणाणं, सिद्भाणं अरहतो नमो | सदहे जिणपत्रतं, पच्चक्खामि य पावगं // * मूलाचार के दो संस्करणों-(१) मूलाचार, सम्पा० पं० कैलाश चन्द्र शास्त्री, प्रका० भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 1984, गाथा 108 एवं (2) मूलाचार, सम्पा० पं० पन्नालाल, प्रका० माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, बम्बई, वि० सं० 1977, गाथा 3/108 में हमें 'जिणवरवसहस्स' पाठ ही मिला है / संभव है मूलाचार का एक अन्य संस्करण जो पत्राकार में छपा है, उसमें जिणवर सहस्स' पाठ मिलता हो और लेखक ने प्रस्तुत लेख हेतु उसी संस्करण का उपयोग किया हो। -सम्पादक
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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