________________ प्रकीर्णकों की पाण्डुलिपियाँ और प्रकाशित संस्करण : 73 पुण्यविजयजी ने 932 गाथा वाली आराधनापताका ( जैसलमेर की मूलप्रति में आराधनापताका भगवती' ऐसा लिखा है और प्रारंभ 'पणमिय नां देविंद वंदिय' इसप्रकार है) को प्रथम स्थान दिया है और इसे चिरंतनाचार्य रचित बताया है / इस ग्रंथ में विषय का 48 द्वारों से वर्णन है / बृहटिप्पनिका में इस पताका को आचंलिक विशेषण दिया गया है (संभवतः यह अंचल गच्छाचार्य की कृति हो) और यह भी कहा गया है कि कई प्रतियों में आराधना' इतना ही नाम है / प्राकृत के अलावा संस्कृत व मरुगुर्जर भाषा में भी इसी नाम की कई भित्र-भित्र रचनायें मिलती हैं परन्तु भाषा कोई भी हो, प्रायः करके वही अंत समय की साधना विभिन्न द्वारों में वर्णित है। लेकिन यह उल्लेखनीय है कि नंदीसूत्र आदि सूत्रों में प्रमाणरूप इस नाम का कहीं उल्लेख नहीं है / वीरभद्र की 989 गाथा वाली आराधनापताका भी प्रसिद्ध और मान्य है / यापनीय ग्रंथमूल (भगवती) आराधना भी इनके जैसा ही ग्रंथ है / प्रर्याप्त मात्रा में इनकी गाथायें मिलती-जुलती हैं। B-4 गच्छाचार-यह प्रकीर्णक छेदसूत्रों के आधार पर रचा गया है और चन्द्रवेध्यक से भी अधिक विस्तार में आचार्य, साधु साध्वी ऐसेतीन भागों में उनकी योग्यता तथा गुणों का सांगोपांग वर्णन इसमें मिलता है / - B-5 ज्योतिषकरण्डक-यह ग्रंथ गणित-ज्योतिष की अति प्राचीन व मौलिक सामग्री लिये हुए है / हाल ही में वेदान्त-ज्योतिष की कई गुत्थियाँ सुलझाने में इसकी मदद ली गई है / यद्यपिमलयगिरि ने यह बात नहीं मानी है तो भी मुनिपुण्यविजयजी ने यह सिद्ध किया है कि यह ग्रन्थ पादलिप्ताचार्य की ही कृति है और उनकी स्वोपज्ञ या अन्य किसी आचार्य की इस पर चूर्णि भी है / वाचक शिवनंदि के टिप्पण सहित यह ग्रन्थ भी महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से पुनः तीसरे खंड में प्रकाशित हुआ है / इसमें समय व मान का परिमाण भी विस्तार से बताया गया है / हमारा मन्तव्य है कि चन्द्रमा पर मानव पहुंच से उत्पत्र चुनौती को दृष्टिगत करते हुए समग्र ज्योतिष साहित्य का विद्वतापूर्ण संपादन आवश्यक है। . .. B-6 तिथिप्रकीर्णक-यह ग्रन्थ किसी भी ग्रन्थ भण्डार में उपलब्ध नहीं है। जैन ग्रंथावली में इसका पूना में उपलब्ध होना लिखा है, परन्तु हमारे ध्यान में नहीं आया / यद्यपि भण्डारकर संस्थान में रहकर हमने 5-6 जैन सूची-पत्रों की प्रेस कापियों को कुछ वर्ष पूर्व अंतिम रूप दिया था। किन्तु यदि खोज की जाय तो ग्रंथ के मिलने की संभावना है वरना इसे गिनती में नहीं लेते। ____B-7 तीर्थोद्गालिक-कथानुयोग के इस ग्रंथ की कुछ सामग्री विवादास्पद बन गई है अतः इसकाशोधपूर्ण पुनः संपादन आवश्यक है / हमारे ध्यान में इस ग्रंथकी १६वीं शती से प्राचीन प्रति कहीं भी नहीं है, हो सकता है कुछ पाठ इसमें प्रक्षिप्त भी हो / ___B-8 द्वीपसागरप्रज्ञप्ति-यह ग्रंथ श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों परम्पराओं में उल्लेखित है, इसे द्वीपसागर संग्रहणी भी कहा जाता है, जो सार्थक भी है। क्योंकि प्रकीर्णको का अधिकांश भाग प्राचीन गाथाओं का संकलन ही है / हो सकता है विधिमार्गप्रपा में जो