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________________ समाधिमरणेतर प्रकीर्णकों की विषयवस्तु : 49 नहीं करना चाहिए, किन्तु कृतिका, विशाखा, मघा एवं भरणी-इन चार नक्षत्रों में लोच करना चाहिए। तीनों उत्तरा एवं रोहिणी नक्षत्र में शिष्य को प्रव्रज्या, उपस्थापना (बड़ी दीक्षा) एवं गणी या वाचक पद देने की अनुज्ञा है / आर्द्रा, अश्लेषा, ज्येष्ठा तथा मूल-इन चार नक्षत्रों में गुरु के पास प्रतिमा धारण करने को कहा गया है / घनिष्ठा, शतभिषज, स्वाति, श्रवण और पुणर्वसू इन नक्षत्रों में गुरु की सेवा और चैत्यों की पूजा करनी चाहिए / चतुर्थ करण द्वार में ग्यारह करणों का उल्लेख मिलता है / बव, बालव, कालव, स्त्रीलोचन, गर वणिज और विष्टि-ये चर करण हैं जबकि शकुनि, चतुष्पद, नाग, किंस्तुघ्न स्थिर करण हैं। ग्रन्थ में कहा गया है कि बव, बालव, कालव, वणिज, नाग एवं चतुष्पद करण में प्रव्रज्या देनी चाहिए / बव करण में व्रतों में उपस्थापना (बड़ी दीक्षा) एवं गणि, वाचक आदि पद प्रदान करना चाहिए / शकुनि एवं विष्टिकरण पादोपगमन संथारे के लिए शुभ माने गवे पंचम ग्रह दिवस द्वार में निम्न सात दिवस निरूपित हैं-(१) रवि, (2) सोम, (3) मंगल, (4) बुध, (5) बृहस्पति, (6) शुक्र एवं (7) शनि / गुरु, शुक्र एवं सोमवार को दीक्षा, व्रतों में उपस्थापना एवं गणि, वाचक आदि पद प्रदान करना चाहिए तथा रविवार, मंगलवार एवं शनिवार संयम-साधना एवं पादोपगमन आदि समाधिमरण की क्रियाओं के लिए शुभ माना गया है / 11 छठे मुहूर्त द्वार में दिन के पन्द्रह मुहूर्त रुद्र, श्रेयस, मित्र, आरभट, सौमित्र, वेरेय, श्रवसु, वृत्त, रोहण, बल, विजय, नैऋत्य, वरुण, अर्यमन द्वीप एवं सूर्य बताये गये हैं तथा . कुछ रात्रि में किसी भी कार्य को करने का उल्लेख नहीं है / मित्र, नन्दा, सुस्थित, अभिजित, चन्द्र, वरुण, अग्निवेश, ईशान, आनन्द एवं विजय इन मुहूर्तों में शैक्ष को उपस्थापना (महाव्रतों में दीक्षित) और गणि एवं वाचक पद प्रदान करने तथा ब्रह्म, वलय, वायु, वृषभ तथा तरुण मुहूर्त में अनशन, पादोपगमन एवं समाधिमरण ग्रहण करने का कथन है / 12 सातवें शकुनबल द्वार में बताया गया है कि पुल्लिंग नाम वाले शकुनों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करें / स्त्री नाम वाले शकुनों में समाधिमरण ग्रहण करें, नपुंसक नाम वाले शकुनों में सभी शुभ कार्यों का त्याग करें एवं मिश्रित शकुनों में सभी आरम्भों का त्याग करें / 13 आठवें लग्नबल द्वार में कहा गया है कि अस्थिर राशियों वाले लग्नों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करना, स्थिर राशियों वाले लग्नों मे व्रत में उपस्थापना करना, एकावतारी लग्नों में स्वाध्याय एवं होरा लग्नों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करनी चाहिए / तदनन्तर सौम्य लग्नों में संयमाचरण एवं क्रूर लग्नों में उपवास आदि तथा राहू एवं केतु लग्नों में सर्वकार्य त्वाग करने का निरूपण है / 14
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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