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________________ समाधिमरणेतर प्रकीर्णकों की विषयवस्तु : 47 पार चले जाते हैं / आगे यह भी कहा गया है कि जो उद्यमी पुरुष क्रोध, मान, माया, लोभ, अरति और जुगुप्सा को समाप्त कर देते हैं, वे परम सुख को खोज पाते हैं।१६चारित्रशुद्धि के विषय में कहा गया है कि पाँच समिति और तीन गुप्तियों में जिसकी निरन्तर मति है तथा जो राग-द्वेष नहीं करता है, उसी का चारित्र शुद्ध होता हे / 17 ग्रन्थ में एक प्रश्न उपस्थित किया गया है कि सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र दोनों एक साथ उपस्थित हो जाएँ तो बुद्धिमान पुरुष वहाँ किसे ग्रहण करे ? अर्थात किसे प्राथमिकता दे ? इसके प्रत्युत्तर में कहा गया है कि बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह दर्शन को पकड़ रखे, क्योंकि चारित्र रहित व्यक्ति तो भविष्य में सम्यक्चारित्र का अनुसरण करके सिद्ध हो सकते हैं, किन्तु दर्शनरहित व्यक्ति कभी भी सिद्ध नहीं हो सकता / 18 इसप्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ में दर्शन की प्राथमिकता को स्वीकार किया गया है। अन्त में ग्रन्थकार मरणगुण का प्रतिपादन करते हुए समाधिमरण की उत्कृष्टता का बोध कराते हुए कहता है कि विषयसुखों का निवारण करने वाली पुरुषार्थी आत्मा मृत्यु समय में समाधिमरण की गवेषणा करने वाली होती है। आगे कहा गया है कि आगम ज्ञान से युक्त किन्तु रसलोलुप साधुओं में कुछ ही समाधिमरण प्राप्त कर पाते हैं किन्तु अधिकांश का समाधिमरण नहीं होता है / 19 ___ ग्रन्थ में कहा गया है कि विनिश्चित बुद्धि से अपनी शिक्षा का स्मरण करने वाला व्यक्ति ही कसे हुए धनुष पर तीर चढ़ाकर चन्द्र अर्थात् यन्त्रचालित पुतली के अक्षिकागोलक को वेध पाता है किन्तु जो व्यक्ति थोड़ा सा भी प्रमाद कर जाता है तो वह लक्ष्य को नहीं वेध पाता / 20 समाधिमरण के विषय में कहा गया है कि सम्यक् बुद्धि को प्राप्त, अन्तिम समय में साधना में विद्यमान, पाप कर्म की आलोचना, निन्दा और गर्दा करने वाले व्यक्ति का ही समाधिमरण होता है / यहाँ मृत्यु के अवसर पर कृतयोग वाला कौन होता है, इस पर भी चर्चा की गई है / 21 ... कषायों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि जिस मनुष्य ने करोड़ पूर्व वर्ष से कुछ कम वर्ष तक चारित्र का पालन किया हो, ऐसे दीर्घ संयमी व्यक्ति के चारित्र को भी ये कषाय क्षणभर में नष्ट कर देते हैं / 22 ग्रन्थ में उन साधुओं को धन्य कहा गया है जो सदैव राग रहित, जिन वचनों में लीन तथा निवृत्त कषाय वाले हैं एवं आसक्ति और ममता रहित होकर अप्रतिबद्ध विहार करने वाले, निरन्तर सद्गुणों में रमण करने वाले तथा मोक्षमार्ग में लीन रहने वाले हैं / 23 तत्पश्चात् समाधिमरण का उल्लेख करते हुए आसक्ति त्याग पर बल दिया गया है / 24 ग्रन्थ का समापन यह कहकर किया गया है कि विनयगुण, आचार्यगुण, शिष्यगुण, विनय-निग्रहगुण, ज्ञानगुण, चारित्रगुण और मरणगुण विधि को सुनकर उन्हें उसी प्रकार
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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