________________ 14 : डॉ. अशोक कुमार सिंह सम्यकप से दुष्कृतों की निन्दा और सुकृत का अनुमोदन करने का निर्देश है / दूसरे अधिकार में संसार में मोहवश किये गये कृत्यों की निन्दा, सन्मार्ग को छिपाने और कुमार्ग का उपदेश देने से जो कर्मबन्ध के हेतु उत्पन्न हुए हों, जीवघात के हेतु बने जो अधिकरण (उपकरण) बनाये हों, कषाय कलुषित और अशुभ लेश्या के कारण जो अमैत्रीपूर्ण व्यवहार किया हो, शरीर, इष्ट और कुटुम्बियों के साधन रूप जो कला, शिल्प आदि जीवों की हिंसा का कारण बनी, जिन शरीरों के द्वारा जन्म-मरण रूप ग्रहण-त्याग से पाप में आसक्त हुआ, लोभ और मोहवश अर्थ को प्राप्त कर जो धारण किया और अशुभ स्थानों में प्रवृत्त हुआ, हल, ओक्खल, शस्त्र, यंत्रादि पाप के साधन जो धारण किये गये और अन्य जो अज्ञान, प्रमाद, दोष विमूढ होकर पाप किये उनका तीन योग और तीन करण से त्याग का संकल्प है। सुकृत अनुमोदन रूप तृतीय अधिकार में सौधर्म स्थान में स्थित देह, सदन, व्यापार, द्रव्य, ज्ञान और कौशल, जीवों के लिए सुखकारक पवित्रस्थान या प्रवचन, शुभदेशना की, जिनों के उत्कृष्ट गुणों की, उनके धर्मकथन रूप परोपकार की, मोहनाशक ज्ञान की, सिद्धों के सिद्धत्व की, सम्पूर्ण कर्मक्षय रूपी शुभभाव की, दर्शन और ज्ञान रूपी स्वभाव की, अनुयोगों के ज्ञाता, आचार्यों के पंचविध आचार से जनित कल्याण की और उपकार में लगे हुए उपाध्यायों के अध्ययन और ज्ञान-दान से मार्ग दिखाने की, समभाव से भावित, उत्तम क्रिया वाले, मोक्ष सुख की साधना को प्राप्त साधुओं की, सम्यक् व्रत ग्रहण करने वाले, धर्मश्रवण, दानादि और अन्य धार्मिक कृत्यों की अनुमोदना की गई है / मोक्षमार्ग के अनुरूप अन्य सत्त्वों की क्रियाओं की भी अनुमोदना है।५ अन्त में चतुःशरण का फल कल्याण बताया गया है। (7) आतुरप्रत्याख्यान' (1) आतुरप्रत्याख्यान शीर्षक से तीन प्रकीर्णक उपलब्ध होते हैं / इसमें से एक वीरभद्राचार्य (११वीं शताब्दी) रचित है / श्री अमृतलाल भोजक ने पइण्णयसुत्ताई भाग 1 की भूमिका में यह प्रश्न उठाया है कि शेष दोनों नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में निर्दिष्ट प्रकीर्णक में से ही कोई एक है या अन्य है, यह विचारणीय है / 2 नन्दीसूत्र चूर्णि, हरिभद्रसूरि की नन्दीवृत्ति और पाक्षिकवृत्ति में इस प्रकीर्णक का परिचय इसप्रकार दिया गया है। यदि कोई दारुण असाध्य बिमारी से पीड़ित हो तो गीतार्थ पुरुष प्रतिदिन खाद्य पदार्थ की मात्रा घटाते हुए प्रत्याख्यान करवाते हैं / धीरे-धीरे जब वह व्यक्ति आहार के विषय में पूर्णतया अनासक्त हो जाता है तब उसे भवचरिम प्रत्याख्यान कराते हैं अर्थात् जीवन-पर्यन्त आहारपान का त्याग कराते हैं / यह निरूपण जिस अध्ययन में है उसे आतुरप्रत्याख्यान कहते इस प्रकीर्णक की रचना गद्य-पद्य मिश्रित है / इसमें सूत्र और गाधाओं की मिली. जुली संख्या तीस है / इसमें प्रथम पाँच गाथाओं में क्रमशः पंचपरमेष्ठियों को अपना मंगल और देव बताकर उनकी स्तुति करते हुए पाप-त्याग करने की प्रतिज्ञा की गई है / इसके पश्चात् अरिहंत, सिद्ध, प्रवचन, आचार्य, गणधर, चतुर्विध संघ की आशातना के लिए