________________ 232 : पं० कन्हैयालाल दक भरत, पांच ऐरावत, पांच देवकुरु तथा पांच उत्तरकुरु इन बीस क्षेत्रों में प्रथम आरा होता है / यहां उत्पत्र होने वाले पुरुषों की जघन्य आयु तीन पल्योपम तथा उत्कृष्ट आयु चार . कोटिसागर की होती है / शरीर की ऊँचाई तीन कोस की होती है। पूर्व में किये गये सुकृत के कारण इन क्षेत्रों के मनुष्यों की इच्छापूर्ति कल्प वृक्ष करते हैं, जिनके नाम इसप्रकार हैंमत्तंगा, भुंगा, त्रुटितांग, दीपज्योति, दिव्यज्योति, चित्रांग, चित्तरस, मणितांग, गेहागार और . अनग्न ये दसों प्रकार के वृक्ष सभी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं, जिसका विशद वर्णन इस ग्रन्थ में उपलब्ध होता है / देवकुरु, उत्तरकुरु क्षेत्रों में ये वृक्ष शाश्वत रूप से पाये जाते हैं जबकि भरत और ऐरावत क्षेत्रों में ये वृक्ष सदैव नहीं पाये जाते हैं / यहां के प्राणी अपनी आयु का कुछ काल अवशेष होने पर मैथुनधर्म का सेवन करते हैं, सन्तानोत्पत्ति करके मृत्यु को प्राप्त करके देवत्व को प्राप्त होते हैं / ये बड़े कोमल स्वभाव के होते हैं, अक्रोधी और ऋजु स्वभावी होते हैं / तप, नियम तथा संयम के कारण ये सभी दुःखों से मुक्त होते हैं, ये प्राणी बिना तप, नियम व संयम के भी देवलोक में विशिष्टतर विषयसुखों को प्राप्त करते हैं (गाथा 26-54) / प्रथम आरे के पश्चात् द्वितीय, तृतीय यावत्, षष्ठम् आरे का विद्वान् ग्रन्थकार ने अत्यन्त भावपूर्ण व रमणीय वर्णन प्रस्तुत किया है, जिसमें प्रत्येक आरे में लोगों के आयुष्य, शरीर की शक्ति, ऊँचाई, बल, बुद्धि, शौर्य आदि का क्रमशः हास होता हुआ बतलाया गया है। आगे कुलकरों की उत्पत्ति, कल्पवृक्षों के नाम तथा उनके द्वारा होनेवाली मानव समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति, भगवान ऋषभदेव से लेकर महावीर तक सभी तीर्थङ्करों के च्यवन कल्याणक की प्ररूपणा एवं जन्म कल्याणक का विशद वर्णन किया गया है / तत्पश्चात् पाँच भरत और पाँच ऐरावत इन दस क्षेत्रों में एक साथ उत्पन्न होने वाले दसों तीर्थङ्करों की माताओं के चौदह स्वप्नों का वर्णन तथा उन श्रेष्ठ नररत्नों के जन्म एवं मोत्सव का अत्यन्त रोचक तथा आहलाददायक वर्णन किया गया है। पांच ऐरावत तथा पांच भरत क्षेत्रों में दस तीर्थकर हुए हैं, उनका जन्माभिषेक करने के लिये हम देवता भक्तिभाव तथा उत्साह से चलें' ऐसा सभी देवताओं को कहकर देवाधिपति शक्र मनुष्यलोक में आते हैं / 64 दिशाकुमारियों का प्रासंगिक वर्णन भी इसी संदर्भ में पठनीय व माननीय है (गाथा 63 - 273) / भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती तथा पुत्री ब्राह्मी आदि युगलों का वर्णन, ऋषभदेव के द्वारा स्थापित की गई 'विनीता' नगरी, शिल्पशिक्षा, राज्य का बँटवारा, चक्रवर्तियों की सेना, उनके चक्र एवं उन सबकी निधियों का अत्यन्त रोचक वर्णन प्रकीर्णककार ने किया है / चक्रवर्ती के चौदह रत्नों का तथा उनकी नगरियों का अत्यन्त लाक्षणिक वर्णन भी प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है (गाथा 282-304) / उपरोक्त दसों क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले तीर्थङ्करों के देह का वर्णन भी ग्रन्थकार ने ग्रन्थ में किया है। एक गाथा में उनके संहनन तथा संस्थान का वर्णन भी कर दिया गया है। इसके पश्चात् तीर्थङ्कर चक्रवर्ती, बलदेव तथा वासुदेवों की आयु प्रमाण एवं शरीर की ऊँचाई का वर्णन किया गया है / भगवान ऋषभदेव के शरीर की ऊँचाई 500 धनुष की