________________ प्रकीर्णक और प्रवचनसारोद्धार : 207 वासं कोडीसहियं आयामं कट्ट आणुपुवीए / गिरिकंदरं व गंतुं पाओवगमं पवज्जेइ / / (प्रवचनसारोद्धार, गाथा 1/877) छविहजयणाऽऽगारं छब्भावणभावियं च छट्ठाणं / इय सत्तसट्ठिदंसणभेयविसुद्धं य सम्मत्तं / (पज्जंताराहणा, गाथा 18) छविहजयणाऽऽगारं छब्भावण च छट्ठाणं / इय सत्तयसठुिलक्खणभेयविसुद्धं च सम्मत्तं / / (प्रवचनसारोद्धार, गाथा 1/927) कंदप्प देवकिब्बिस अभिओगा आसुरी ये सम्मोहा / इह-परलोए कामं जीविय-मरणं च नासंतु (?) || (पज्जंताराहणा, गाथा 260) कंदप्प देवकिदिवस अभिओगा आसुरी य सम्मोहा / एसा हु अप्पसत्था पंचविहा भावणा तत्थ // . (प्रवचनसारोद्धार, गाथा 1/641) सन्दर्भ-सूची प्रवचनसारोद्धार, सम्पादक-मुनिचन्द्रविजय, श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति तपागच्छ, गोपीपुरा संघ, सूरत-१९८०, भूमिका पृ० 6 2... जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी - 1968, भाग-४, पृ० 177-178 वही, पृ० 178 4. . . वही, पृ० 179 5. पइण्णयसुत्ताइं भाग - 1,2, सम्पादक - मुनि पुण्यविजय, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई-१९८७ * प्रवक्ता पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई०टी० आई० रोड़, वाराणसी-५