________________ गणिविद्या प्रकीर्णक एवं उसका अन्य प्राचीन ग्रन्थों में स्थान : 187 शुभ, षष्ठी अशुभ, सप्तमी शुभ, अष्टमी विघ्ननाशक, नवमी मृत्युदायक, दसमी द्रव्यप्रद, एकादशी शुभ, द्वादशी-त्रयोदशी कल्याणप्रद, चतुदर्शी उग्र, पूर्णिमा पुष्टिप्रद एवं अमावस्या अशुभ है। इन्हीं ग्रन्थों में साध्वाचार के अतिरिक्त विवाह, गृह निर्माण, यात्रा, शस्त्र प्रयोग, प्रतिष्ठा, जाप, संग्राम, सैनिकों की भर्ती, आभूषण निर्माण, सवारी गाड़ी आदि कार्यों के लिये अशुभ दिन नियत किये गये हैं। 3. नक्षत्रद्वार में जिन 27 नक्षत्रों का वर्णन प्राप्त होता है उनमें घनिष्ठा से रेवती तक 5 नक्षत्र पंचक माने जाते हैं / उत्तरफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद और रोहिणी में किये गये समस्त स्थित कार्य शुभ होते हैं / स्वाति, पूणर्वसू, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा चर संज्ञक होने से मशीन, सवारी एवं यात्रा हेतु शुभ हैं / पूर्वफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वभाद्रपद, भरणी और मघा नक्षत्र क्रूर होने से इनमें किये गये समस्त कार्य अशुभ माने जाते हैं। विशाखा एवं कृत्तिका सामान्य होने से शुभ हैं / हस्त, अश्विनी, पुष्य एवं अभिजित लघुसंज्ञक हैं इनमें व्यापार करना, विद्याध्ययन करना, शास्त्र लिखना शुभ है / मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा मृदु होने से गायन, वस्त्रधारण, यात्रा एवं क्रीड़ा आदि करने के लिये शुभ हैं / मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा और आश्लेषा दारूण हैं अतः शुभ कार्यों में इनका त्याग करना चाहिये। . 4. करणद्वार में 11 करणों में बव करण में शांति, बालव में गृह निर्माण, दानपुण्य, कोलव में मैत्री, विवाह, तैतिल में राजकार्य, गर करण में कृषि, क्रय-विक्रय, विष्टि में उग्र कार्य, शकुनि में मंत्र-तंत्र सिद्धि, चतुष्पद में पूजा पाठ, नाग में स्थिर कार्य एवं किस्तुघ्न करण में नाचना-गाना आदि कार्य श्रेष्ठ माने गये हैं / 22 5. ग्रहदिवस के सात वारों में रविवार, मंगलवार एवं शनिवार को क्रूर ग्रह मानकर इन दिनों समस्त कार्यों का त्याग करने का विधान किया गया है / शुक्रवार, गुरुवार, बुधवार सब कार्यों में ग्राहय हैं / सोमवार को मध्यम माना गया है / ... 6. एक मुहूर्त दो घड़ी (48 मिनट ) कालप्रमाण माना गया है / व्रततिथिनिर्णय नामक ग्रन्थ में 15 मुहूर्तों के नाम तथा उनका स्वभाव और उनमें करने योग्य कार्य तथा उनके फलों का वर्णन किया गया है / 23 गणिंविद्या एवं अन्य ज्योतिष ग्रन्थों को देखने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकलता है कि जहाँ गणिविद्या में तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्तों का वर्णन श्रमणों के कार्यों, उनके अध्ययन, उनके पदोपगमन आदि का वर्णन है, वहीं अन्य ग्रन्थों में धार्मिक कार्यों के साथ-साथ पारिवारिक, सामाजिक एवं अन्यान्य कार्यों को करने के लिये तिथि, नक्षत्र, करण आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है / जहाँ तक मूल गणिविद्या प्रकीर्णक की गाथाओं का अन्य ग्रन्थों से तुलना का प्रश्न है, गणिविद्या की अनेक गाथाएँ शब्दशः या किंचित अर्थ भेद से अनेक प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं, जिनका विवेचन इस प्रकार हैं