________________ गच्छाचार ( प्रकीर्णक) का समीक्षात्मक अध्ययन : 179 एवं गच्छसमुद्दे सारणवीईहिं चोइया संता / निति तओ सुहकामी मीणा व जहा विणस्संति / / (ओघनियुक्ति, गाथा 116-117) गुरुपरिवारो गच्छो तत्थ वसंताण निज्जरा विउला / विणयाओ तह सारणमाईहिं न दोसपडिवत्ती / / -पंचवस्तु (हरिभद्रसूरि), प्रका० श्री देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, गाथा 696 16. The Canonical Literature of the Jainas, p. 51-52. 17. bid.,p.52. 18. विधिमार्गप्रपा, पृष्ठ 57-58 / / 19. महानिसीह-कप्पाओ ववहाराओ तहेव य / साहु-साहुणिअट्ठाए गच्छायारं समुद्धियं / / (गच्छाचार प्रकीर्णक, गाथा 135) 20. नन्दीसूत्र-सम्पा० मुनि मधुकर, सूत्र 76, 79,-81 21. उद्धृत-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 2, पृष्ठ 291-292 22. विस्तार हेतु द्रष्टव्य है-(क) सूत्तपाहुड, गाथा 9-15 / (ख) बोधपाहुड, गाथा 17-20, 45-60 / (ग) लिंगपाहुड, गाथा 1-20 / 23. संबोधप्रकरण, कुगुरु अध्याय, गाथा 40-50 / * शोधाधिकारी . आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान पद्मिनी मार्ग उदयपुर (राज.)