________________ प्रकीर्णक और शौरसेनी आगम साहित्य : 157 ज़ा सव्वसुंदरंगी सविलासा पढमजुव्वणक्कंता / स च्चेव जराजुण्णा अमणुण्णा होइ लोयस्स / / ( आराहणापडाया ( वीरभद्दापरियविरइया), गाथा 621) जा सव्वसुंदरंगी सविलासा पढमजोव्वणे कंता / सा चेव मुदा संती होदि हु विरसा य वीभच्छा / (भगवती आराधना, गाथा 1056) खोभेइ पत्थरो जह दहे पडतो पसण्णमवि पंकं / खोभेइ तहायं कम (?) पसण्णमवि तरुणसंसग्गी // ( आराहणापडाया ( वीरभद्दापरियविरइया), गाथा 625) खोभेइ पत्थरो जह दहं पडंतो पसण्णमवि पंकं / खोभेइ तहा मोहं पसण्णमवि तरुणसंसग्गी // . (भगवती आराधना, गाथा 1072) पुरिसस्स अप्पसत्थो भावो तिहिं कारणेहिं संभवइ / विरहम्मि अंधयारे कुसीलसेवाइ सयराहं // (आराहणापडाया ( वीरभदायरियविरइया), गाथा 627) पुरिसस्स अप्पसत्थो भावो तिहिं कारणेहिं संभवइ / विरहम्मि अंधयारे कुसीलसेवाए ससमक्खं / / (भगवती आराधना, गाथा 1080) सिंगारतरंगाए विलासवेलाइ जुव्वणजलाए / - पहसियफेणाइ मुणी नारिनईए न वुब्भंति / / ___ ( आराहणापडाया ( वीरभद्दायरियविरइया), गाथा 644) सिंगारतरंगाए विलासवेगाए जोव्वणजळाए / विहसियफेणाए मुणि णारणईए ण उन्भंति // (भगवती आराधना, गाथा 1111) * संगो महाभयं जं विहेडिओ सावरण संतेण / पुत्तेण हिए अत्यम्मिमणिवईकुंचिएण जहा / / __ ( आराहणापडाया ( वीरभद्दापरियविरइया), गाथा 657) संगो महाभयं जं विहेडिदो सावरण संतेण / पुत्तेण चेव अत्थे हिदम्मि णिहिदेल्लए साहू // (भगवती आराधना, गाथा 1130) जह इंधणेण अग्गी, जह य समुद्दो नईसहस्सेहिं / तह.जीवस्स न तित्ती अस्थि तिलोए वि लद्भम्मि // ( आराहणापडाया ( वीरभदायरियविरइया), गाथा 662)