________________ प्रकीर्णक और शौरसेनी आगम साहित्य : 135 . . जागमल्लाणी / सत्थरगहणं विसभक्खणं च जलणं जलप्पवेसो य / अणयार भंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणि / / (मूलाचार, गाथा 1/74) जइ उप्पज्जइ दुक्खं तो दट्ठव्वो सहावओ नवरं / किं किं मए न पत्तं संसारे संसरंतेण? || (आउरपच्चक्खाण पइण्णयं, गाथा 49 ) जइ उप्पज्जइ दुक्खं तो दट्ठव्वो सभावदो णिरये / कदमं मए ण पत्तं संसारे संसरंतेण || (मूलाचार, गाथा 1/78) संसारचक्कवालम्मि मए सव्वे वि पोग्गलाबहुसो / आहारिया य परिणामिया य नाहं गओ तित्तिं // ( आउरपच्चक्खाण पइण्णयं, गाथा 50) संसारचक्कवालम्मिए मए सव्वेपि पुग्गला बहुसो / आहारिदा य परिणामिदा य ण मे गदा तित्ती / / (मूलाचार, गाथा 1/79) बाहिरजोगविरहिओ अभिंतरझाणजोगमल्लीणो / जह तम्मि देसकाले अमुढसनो चयइ देहं / / (आउरपच्चक्खाण पइण्णयं, गाथा 56) बाहिरजोगविरहिओअब्भंतरजोगझाणमल्लीणो / जह तम्हि देसयाले अमूढसण्णो जहसु देहं / / . (मूलाचार, गाथा 1/89) लद्धं अलद्धपुव्वं जिणवयणसुभासियं अमियभूयं / गहिओ सुग्ग्इमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि / / ( आउरपच्चक्खाण पइण्णयं, गाथा 64) लद्धं अलद्धपुव्वं जिणवयणसुभासिदं अमिदभूदं / . गहिदो सुग्गइमग्गो णाहं मरणस्स बीहेमि || (मूलाचार, गाथा 1/99) छत्तीसगुणसमन्त्रागएण. तेण वि अवस्स दायव्वा / परसक्खिया विसोही सुठ्ठ वि ववहारकुसलेणं / / (गच्छायार पइण्णयं, गाथा 12) छत्तीसगुणसमण्णो गदेण वि अवस्समेव कायव्वा / परसक्खिया विसोधी सुट्ठ वि ववहारकुसलेण / / __(भगवती आराधना, गाथा 31)