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________________ आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान, महत्त्व, रचनाकाल एवं रचयिता * प्रो० सागरमल जैन आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान किसी भी धार्मिक परम्परा का आधार उसके धर्मग्रंथ होते हैं, जिन्हें वह प्रमाणभूत मानकर चलती है / जिस प्रकार मुसलमानों के लिए कुरान, ईसाईयों के लिए बाइबिल, बौद्धों के लिए त्रिपिटक और हिन्दुओं के लिए वेद प्रमाणभूत ग्रंथ हैं, उसी प्रकार जैनों के लिए आगम प्रमाणभूत ग्रंथ हैं / सर्वप्रथम तत्त्वार्थसूत्र, नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में आगमों का वर्गीकरण अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के रूप में किया गया है / परम्पसगत अवधारणा यह है कि तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट और गणधरों द्वारा रचित ग्रंथ अंगप्रविष्ट आगम कहे जाते हैं। इनकी संख्या बारह है, जो श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में समान रूप से स्वीकृत हैं / इन अंग आगमों के नाम हैं- 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति 6. ज्ञाताधर्मकथांग 7. उपासकदशांग 8. अन्तकृद्दशांग 9. अनुत्तरौपपातिक दशा१०. प्रश्नव्याकरणदशा 11. विपाकदशा और 12. दृष्टिवाद / इनके नाम और क्रम के संबंध में भी दोनों परम्पराओं में एकरूपता है / मूलभूत अन्तर मात्र यह है कि जहाँ श्वेताम्बर परम्परा आज भी दृष्टिवाद के अतिरिक्त शेष ग्यारह अंगों का अस्तित्व स्वीकार करती है, वहाँ दिगम्बर परम्परा आज मात्र दृष्टिवाद के आधार पर निर्मित कसायपाहुड, षट्खण्डागम आदि के अतिरिक्त इन अंग आगमों को विलुप्त मानती __अंगबाह्य वे ग्रंथ हैं जो जिनवचन के आधार पर स्थविरों के द्वारा लिखे जाते हैं। नन्दीसूत्र में इन अंग बाह्य आगमों को भी प्रथमतः दो भागों में विभाजित किया है१. आवश्यक और 2. आवश्यक व्यतिरिक्त / आवश्यक के अन्तर्गत सामायिक, चार्तुविंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान-ये छः ग्रंथ सम्मिलित रूपसे आते हैं, जिन्हें आज आवश्यकसूत्र के नाम से जाना जाता है / इसी ग्रंथ में आवश्यक व्यतिरिक्त आगम ग्रंथों को भी पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है-१. कालिक और 2. उत्कालिका आज प्रकीर्णकों में वर्गीकृत नौ ग्रंथ इन्हीं दो विभागों के अन्तर्गत उल्लिखित हैं / इसमें कालिक के अन्तर्गत ऋषिभाषित और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति इन दो प्रकीर्णकों का उल्लेख मिलता है, जबकि उत्कालिक के अन्तर्गत देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रकवेध्यक, गणिविद्या, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान और मरणविभक्ति इन सात प्रकीर्णकों का उल्लेख है। प्राचीन आगमों में ऐसा कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि अमुक-अमुक ग्रंथ ' प्रकीर्णक के अन्तर्गत आते हैं / नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र दोनों में ही आगमों के विभिन्न
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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