________________ 116 : डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय m 4. सन्दर्भ सूची अत्यंभासइ अरहा सुत्तं गंधति गणहरा निउण-आवश्यकनियुक्ति, गाथा - 92 प्राकृतेति / सकलजगज्जन्तूनांव्याकरणादिभिरनाहितसंस्कारः। सहजो वचनव्यापार प्रकृतिः / तत्र भवं सैव वा प्राकृतम् ....... मेघनिर्मुक्तजलमिवकस्वरूप तदेव चदेशविशेषात संस्कारणाच्चसमासादित विशेष सत् संस्कृतायुन्तरविभेदानाप्नोति। -रुद्रट - काव्यालंकार, श्लोक 2/12, पृ० 13 मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, संस्करण 1963 / पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृ० 38-39 मुनि पुण्यविजय, नन्दीसुत्त अनुयोगदाराई, प्रस्तावना, पृ० 14 हरगोविन्ददास, टी० सेठ, पाईयसद्दमहण्णवो का उपोद्घात, पृ०३८ पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृ० 39 (i) षट्खण्डागम भाग 1, पृ० 96 (ii) पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि-१/२० (iii) नेमिचन्द, गोम्मटसार - जीवकाण्ड, पृ० 367,368 (iv) जयधवला, पृ० 25, धवला, पृ० 96 हीरालाल जैन, षट्खण्डागम - भाग 1 - प्रस्तावना, मुनि मधुकर, समवायांगसूत्र - समवाय 84 मुनि पुण्यविजय, पइण्णयसुत्ताई भाग 1, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई,संस्करण 1987 मुनि मधुकर, नन्दीसूत्र, पृ० 80-81 / डॉ. सागरमल जैन - ऋषिभाषित : एक अध्ययन मुनि पुण्यविजय, पइण्णयसुत्ताइं भाग 1-2 Prof. M.A. Dhaky, Aspects of Jainology - The Dates of Kundkundacharya, Pt. Dalsukh Malvania Felicitation Vol. 1, P.V. Research Institute, Varanasi--P. 190. 8. 11. 12. 13. 14.