________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा : 109 48. आया हु महं नाणे आया मे दंसणे चरित्ते य। आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे / / ( आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 24) महाप्रत्याख्यान, गाथा 12 49. 56. 50. जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ / ___ तं तह आलोइज्जा मायामोसं पमोत्तूणं / / ( आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 33) 51. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 28.29 संथारयपव्वज्जं पडिवज्जइ सो वि निअमनिरवज्जं / सव्वविरइप्पहाणं . सामाइअचरित्तमारुहइ / / __ (भक्तपरिज्ञा, गाथा 33) 53. भगवती आराधना (शिवार्य), गाथा 640 54. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गाथा 96, संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 53 55. संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 27 जो गारवेण मत्तो निच्छइ आलोयणं गुरूसगासे / आरूहइ य संथारं अविसुद्धो तस्स संथारो // (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 33 ) 57. वही, गाथा 36-40 58. वही, गाथा 41-43 59.. वही, गाथा 46 तणसंथारनिसन्नो वि मुणिवरो भट्ठरागमय मोहो / जं पावइ मुत्तिसुहं कत्तो तं चक्कवट्टीवि / / __ (वही, गाथा 48) 61. . वही, गाथा 55 62. वही, गाथा 104 63. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गाथा 54 64. संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 100 65. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गाथा 34 66. वही, गाथा 109 - 67... इय पडिवण्णाणसणो सम्मं भावेज्ज भावणाओ सुभा / एगत्ताऽणिच्चत्ताऽसुइत्त अण्णत्त पभिईओ / / ( आराधनाप्रकरण, गाथा 63)