________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा : 107 15. पंचसमिओ तिगुत्तो सुचिरं कालं मुणी विहरिऊणं / मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहओ भणिओ / / बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ / आराहणोवउत्तो जिणेहिं आराहओ भणिओ / / (चन्द्रवेध्यक, गाथा 157-158) . 16. तिविहं भणंति मरणं बालाणं बालपंडियाणं च / तइयं पंडियमरणं जं केवलिणो अशुमरंति / / (आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 36) 17. पंडियपंडियमरणं च पंडियं बालपंडियं तह य / बालमरणं चउत्थं च पंचमं बालबालं तु / / ( आराधनापताका (2), गाथा 43 ) 18. द्रष्टव्य, आराधनापताका (2), गाथा 44-47 1.9. सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य / अणयार भंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणि / / ( आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 46 ) 20. सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते, तं जहा अज्झवसाण णिमित्ते, आहारे वेयणा पराघाते / फासे आणापाणू सत्तविहं भिज्जए आउ / / ___ (स्थानाङ्गसूत्र, 7.72) 21. . भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 9 22.. भत्तपरिनामरणं दुविहं सविआरमो य अवियारं / सपरक्कमस्स मुणिणो संलिहिअतणुस्स सविआरं / / अपरक्कमस्स काले अप्पहुप्पंतंमि जं तमविआरं // ( भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 10-11). सम्पूर्ण विवरण के लिए द्रष्टव्य, आराधनापताका (वीरभद्र) आराधनापताका (वीरभद्र), गाथा 895 द्रष्टव्य, वही, गाथा 896-900 भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 14 27. सम्पूर्ण विवरण के लिए द्रष्टव्य, भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक ..28. आराधनापताका (वीरभद्र), गाथा 908 वही, गाथा 909 . 30. वही, गाथा 910 31. वही, गाथा 905-907 23. 25.