________________ SETTESTHETPSजीव विचार प्रकरण STRESSETTE - पंचेन्द्रिय जाति के संमूर्छिम जीव स्वजातीय जीवों के मल, पसीना, वीर्य, रुधिर, 'मेल, पित्त, पेशाब आदि में पैदा होते हैं। मनुष्य के भेद मनुष्य के मुख्य रुप से तीन भेद हैं। 1) कर्मभूमिज मनुष्य 2) अकर्मभूमिज मनुष्य 3) अन्तर्वीपज मनुष्य (1) कर्मभूमि - जहाँ असि, मसि और कृषि का कार्य होता है / जहाँ अस्त्र-शस्त्र, लेखन एवं खेती का कार्य होता है, उसे कर्मभूमि कहते हैं। कर्मभूमि में जन्म लेने वाले मनुष्य कर्मभूमिज मनुष्य कहलाते हैं। कर्मभूमियाँ कुल पन्द्रह हैं - पांच भरत, पांच महाविदेह और पांच ऐरावत / (2) अकर्मभूमि - जिस भूमि में अस्त्र-शस्त्र, लेखन एवं कृषि का कार्य नहीं होता है, उसे अकर्मभूमि कहते हैं। उस भूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य अकर्मभूमिज मनुष्य कहलाते हैं। अकर्मभूमियाँ 30 हैं- पांच हिमवंत, पांच हिरण्यवंत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक्, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु / / (3) अन्तर्वीप - जिसके चारों तरफ पानी हो, वे अन्तर्वीप कहलाते हैं। वहाँ जन्म लेने वाले मनुष्य अन्तीपज कहलाते हैं। अन्तर्वीप कुल छप्पन हैं। भरत क्षेत्र की उत्तर दिशा में हिमवन्त नामक पर्वत है / वह पूर्व एवं पश्चिम दिशा में लवण समुद्र तक लम्बा है / इन दोनों दिशाओं में दो-दो द्रष्ट्रांकार भूमियाँ हैं / इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र के उत्तर में शिखरी पर्वत है / वह भी पूर्व एवं पश्चिम दिशा में लवण समुद्र तक लम्बा है / उन दोनों दिशाओं में भी दो-दो द्रष्ट्रांकारभूमियाँ है / इस प्रकार कुल आठ भूमियाँ होती हैं प्रत्येक द्रष्ट्रांकार भूमि में सात-सात अन्तर्वीप हैं। इस प्रकार कुल 56 अन्तर्वीप होते हैं। हिमवन्त पर्वत पर स्थित 28 अन्तीपों के जो नाम हैं, उसी नाम के 28 अन्तर्वीप शिखरी पर्वत पर स्थित हैं। पन्द्रह कर्मभूमियाँ, तीस अकर्मभूमियाँ और छप्पन्न अन्ीप होने से मनुष्यों के एक सौ एक भेद होते हैं। उनमें गर्भज अपर्याप्ता एवं पर्याप्ता एवं संमूर्छिम अपर्याप्ता रूप तीनतीन भेद होने से कुल तीन सौ तीन भेद होते हैं।