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________________ RSSETTER जीव विचार प्रश्नोत्तरी TREATRE 623) जीव के 563 भेदों में से कितने भेद अप्रत्यारव्यानी कषाय से मुक्त हो सकते हैं ? उ. जो जीव आगारधर्म (श्रावक धर्म) स्वीकार करते हैं, वे अप्रत्याख्यानी कषाय से मुक्त होते हैं / गर्भज पर्याप्ता संज्ञी तिर्यंच के पांच भेद एवं कर्मभूमिज गर्भज पर्याप्ता मनुष्य के 15 भेद ही इस कषाय से मुक्त हो सकते हैं। 624) जीव के 563 भेदों में से कितने भेदों में कौनसा संघयण पाया जाता है? उ. जीव के पांच सौ त्रेसठ भेदों में से 234 भेद (देव,नारकी,एकेन्द्रिय) संघयण रहित होते हैं। संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य एवं विकलेन्द्रिय के मात्र सेवार्त संघयण ही होता है। वज्रऋषभनाराच संघयण- गर्भज मनुष्य-२०२, गर्भज तिर्यंच-१० = 212 / मध्यवर्ती चार संघयण-कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य-३०, गर्भज तिर्यंच-१०=४० सेवार्त संघयण-संमूर्छिम मनुष्य-१०१, कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य-३०, पंचेन्द्रिय तिर्यंच 20, विकलेन्द्रिय-६= 157 .. 625) संसारी जीवों के 563 भेदों में से अढी द्वीप में कितने भेव पाये जाते हैं ? उ. 1) भरत क्षेत्र में 563 भेदों में से 93 भेद पाये जाते हैं / तिर्यंचों 48 भेद और भरत क्षेत्र के तीन मनुष्य- 1) गर्भज पर्याप्ता 2) गर्भज अपर्याप्ता 3) संमूर्छिम अपर्याप्ता 4) गर्भज अपर्याप्ता, 2) महाविदेह में भी 93 भेद भरतक्षेत्र की भाँति पाये जाते हैं। 3) जम्बूद्वीप में 563 भेदों में से 183 भेद पाये जाते हैं / तिर्यंचों के 48 भेद एवं भरत, महाविदेह, ऐरावत, हिमवंत, हिरण्यवंत, हरिवर्ष, रम्यक्, देवकुरू और उत्तरकुरू, इन 45 भूमियों के गर्भज पर्याप्ता, गर्भज अपर्याप्ता, संमूर्च्छिम अपर्याप्ता मनुष्य, इस प्रकार मनुष्य के 135 भेद होते हैं / कुल 183 भेद हुए। 4) लवण सुमद्र में 56 अन्तर्वीपों के गर्भज पर्याप्ता, गर्भज अपर्याप्ता और संमूर्छिम . अपर्याप्ता मनुष्यों की अपेक्षा से 168 (5643) और तिर्यंचों के 48 भेद मिलाकर कुल 216 भेद हुए।
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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