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________________ P OSTABI जीव विचार प्रश्नोत्तरी RISHTASTERBA कर्मभूमिज मनुष्य गर्भज पर्याप्ता-अपर्याप्ताअकर्मभूमिज मनुष्य गर्भज पर्याप्ता-अपर्याप्ताअन्तर्वीपज मनुष्य गर्भज पर्याप्ता-अपर्याप्तादूसरे देवलोक तक पर्याप्ता-अपर्याप्ता . 128 60 . 112 . . कुल 340 एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संमूर्छिम, नारकी नपुंसक वेद वाले ही होते हैं। दूसरे देवलोक से उपर देवियाँ नहीं होती हैं। 611) जीव के 563 भेदों में से कितने भेवों में केवलज्ञान एवं मनःपर्यवज्ञान हो सकता हैं? उ. कर्मभूमिज गर्भज पर्याप्ता मनुष्यों को ही केवलज्ञान एवं मनःपर्यवज्ञान होने से जीवों के 563 भेदों से मात्र 15 भेदों में ही ये दो ज्ञान हो सकते हैं। पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच महाविदेह के गर्भज पर्याप्ता मनुष्य ही संयम धारण कर सकते हैं और केवलज्ञान और मनःपर्यवज्ञान संयमी आत्माओं को ही होता है। 612) जीब के 563 भेदों में से प्रथम मिथ्यावृष्टि गुणठाणे में कितने भेद होते . हाता हा उ. पांच अनुत्तर विमान के देवों के 10 भेद चौथे गुणठाणे में ही होते हैं / इन 10 भेदों को छोडकर शेष 553 भेदों में पहला गुणठाणा पाया जाता हैं। 613) जीव के 563 भेदों में से कितने भेद तीसरे गुणठाणे में पाये जाते हैं ? उ. 1) तीसरा गुणठाणा केवल पर्याप्ता संज्ञी जीवों के ही हो सकता हैं। एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीव असंज्ञी होने से उनमें तीसरा गुणठाणा नहीं होता हैं। 2) पंचेन्द्रिय तिर्यंच में अपर्याप्ता एवं संमूर्छिम भेदों के अतिरिक्त गर्भज पर्याप्ता के पांच भेदों में ही तीसरा गुणठाणा हो सकता हैं। 3) पर्याप्ता नारकी के सात भेदों में तीसरा गुणठाणा हो सकता है। 4) देवों में पन्द्रह परमाधामी सदैव पहले गुणठाणे में ही होते हैं। अनुत्तर वैमानिक देवों में चौथा गुणठाणा ही होता हैं। इन 40 भेदों के अतिरिक्त 158 भेदों में से पर्याप्ता
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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