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________________ RESTHETI जीव विचार प्रश्नोत्तरी ESTATERESTHES 9) नौवां ग्रैवेयक 31 सागरोपम 30 सागरोपम 536) पांच अनुत्तर विमान के देवों का आयुष्य कितना होता है ? उ. विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित के देवों का उत्कृष्ट आयुष्य 32 सागरोपम एवं जघन्य आयुष्य 31 सागरोपम होता है। सर्वार्थसिद्धविमान के देवों का उत्कृष्ट एवं जघन्य आयुष्य 33 सागरोपम होता है। 537) देवों का आयुष्य कैसा होता हैं ? उ. पर्याप्ता देवों का आयुष्य निरूपक्रमी होता है। देव पूर्ण आयुष्य भोगकर ही मरते हैं। अतः उनकी अपर्याप्त अवस्था में मृत्यु नहीं होती हैं। 538) देवताओं की स्वकाय स्थिति कितनी होती है ? उ. देव स्वकाय स्थिति से रहित होते हैं। देव मरकर पुनः देव नहीं बन सकते / बीच में __ अन्य भव करके ही देव बन सकते हैं। 539) देव चारों गतियों में से कितनी गतियों में जा सकता हैं ? उ. देव मरकर मनुष्य या तिर्यंच गति में ही जा सकता है। वह नरक अथवा देवलोक में उत्पन्न नहीं हो सकता हैं। 540) भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क, पहले-दूसरे देवलोक एवं प्रथम किल्बिषिक के देव कहाँ-२ उत्पन्न हो सकते हैं ? उ. एकेन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जाति में उत्पन्न हो सकते हैं। एकेन्द्रिय जाति में भी बादर पृथ्वीकाय, बादर अप्काय और बादर वनस्पतिकाय में ही उत्पन्न हो सकते हैं। पंचेन्द्रिय में 15 कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य और 5 संज्ञी तिर्यंच में उत्पन्न हो सकते हैं। इन 23 भेदों को पर्याप्ता एवं अपर्याप्ता की अपेक्षा से गिनने से 46 भेद होते हैं। अर्थात् अप्काय, तेउकाय, द्वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, देवलोक एवं नरक में उत्पन्न नहीं हो सकते हैं। 541) तीसरे देवलोक से आठवें देवलोक के देव कहाँ-२ उत्पन्न हो सकते हैं? उ. तीसरे से आठवें देवलोक के देव पंचेन्द्रिय जाति में ही उत्पन्न होते है। पंचेन्द्रिय जाति में भी 15 संज्ञी कर्मभूमिज मनुष्य एवं 5 संज्ञी तिर्यंच बन सकते हैं / अर्थात् एकेन्द्रिय,
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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