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________________ HTTERT जीव विचार प्रश्नोत्तरी RRRRRRY 8) मरूत 9) अरिष्ट / 485) नवलोकान्तिक देव कहाँ पर स्थित हैं ? उ. लोकान्तिक देव विषय-रति से परे होने से देवर्षि कहलाते हैं / ये ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक के चारों ओर दिशाओं-विदिशाओ में रहते हैं। ईशान कोण में सारस्वत, पूर्व में आदित्य, अग्निकोण में वन्हि, दक्षिण में अरूण, नैऋत्य कोण में गर्दतोय, पश्चिम में तुषित, वायव्यकोण में अव्याबाध, उत्तर में मरूत, और मध्य में अरिष्ट स्थित हैं। 486) नवलोकान्तिक देवों के उज्ज्वल भाग्य को सूचित करने वाला कार्य बताओ? उ. तीर्थंकर परमात्मा का दीक्षा लेकर केवलज्ञान प्राप्त कर चतुर्विध संघ की स्थापना करने की विनंती करना। 487) नव ग्रैवेयक देवों के क्या नाम हैं ? उ. 1) भद्र 2) सुभद्र 3) सुजात 4) सुमनस 5) सुदर्शन 6) प्रियदर्शन 7) अमोघ 8) सुप्रतिबद्ध 9) यशोधर 488) मवयैवेयक विमानों के क्या नाम हैं ? उ. 1) सुदर्शन 2) सुप्रतिबद्ध 3) मनोरम 4) सर्वभद्र 5) सुविशाल 6) सुमनस 7) सौमनस 8) प्रियंकर 9) नंदीकर / 489) बारह वैमानिक देवलोकों के उपर स्थित नौ देव विमानों को ब्रैवेयक . क्यों कहा जाता हैं? उ. यह संपूर्ण चौदह राजलोक पुरूषाकृति में हैं और वे नौ देव विमान पुरूषाकृति में ग्रीवा स्थली में स्थित होने के कारण नवग्रैवेयक कहलाते हैं। 490) पांच अनुत्तर देवलोकों के क्या नाम हैं ? उ. 1) विजय 2) वैजयन्त 3) जयन्त 4) अपराजित 5) सर्वार्थसिद्ध / 491) अनुत्तर विमान के देवों की क्या विशिष्टता होती हैं ? उ. पांच अनुत्तर विमानों में सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों का च्यवन (मृत्यु) होने के
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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