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________________ धाता THERE जीव विचार प्रश्नोत्तरी SHARE वाणव्यंतर देव दक्षिण दिशा का इन्द्र उत्तर दिशा का इन्द्र 1) अणपन्नी सन्निहित सामान्य 2) पणपन्नी विधाता 3) इसीवादी ऋषि ऋषिपाल 4) भूतवादी ईश्वर माहेश्वर 5) कंदित सुवत्स विशाल 6) महाकंदित हास्य 7) कोहण्ड श्वेत महाश्वेत 8) पतंग पतंग पतंगपति 449) व्यन्तर देव किसे कहते है ? / उ. भवनपति देवों के भवनों के उपर छोडे गये हजार योजन में से उपर तथा नीचे के सौ सौ योजन छोडकर शेष आठ सौ योजन में रहने वाले देवों को व्यंतर देव कहते हैं। उपर के छोड गये सौ योजन के उपर-नीचे के दस-दस योजन के अतिरिक्त अस्सी योजन में वाणव्यंतर देव रहते हैं। पहाडों, गुफाओं एवं वनों के अन्तरों में रहने के कारण इन्हे व्यंतर एवं वाणव्यंतर कहते हैं। 450) व्यंतर देवों के चिन्ह क्या होते हैं ? उ. आठ व्यंतर देवों के आभूषण इत्यादि में चिन्ह होते हैं जो क्रमशः अशोक, चम्पक, .. नाग, तुम्बरु, वट, खट्वांग, सुलस और कटम्बक है। इनमें से खट्वांग के अतिरिक्त सात चिन्ह वृक्ष जाति हैं। खट्वांग नामक उपकरण तापसों के होता है। 451) वाणव्यंतर, तिर्यग्नुंभक किस निकाय के देव हैं ? उ. व्यंतर निकाय के। 452) तिर्यग्मुंभक देव किसे कहते हैं एवं उनके क्या-२ कार्य हैं ? उ. अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र प्रवृत्ति करने वाले एवं निरन्तर क्रीडा में आसक्त रहने वाले तिर्यग्भक देव कहलाते हैं। ये तिर्छा लोक में रहने के कारण तिर्यग्भक देव के
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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