________________ 388888888880 जीत विचार प्रकरण 088888058883 मृतम्.............. परमात्मा महावीर का दर्शन आत्म ज्ञान का दर्पण है। एक ऐसा दर्पण जिसमें निहारकर हम जीवन और दृष्टि को मांज सकते हैं। एक भी ऐसा द्रव्य, पर्याय, काल, पदार्थ अवशिष्ट नहीं रहा जो परमात्मा के ज्ञान में उद्भासित न हुआ हो / वह ज्ञान अनंत था, असीम था। सारा जगत् उसमें समाविष्ट हो गया। यद्यपि परमात्मा अनंत ज्ञान-आलोक स्वामी थे पर अनंत को लुटा पाना संभव नहीं था। अनंत को पाने के लिये अनंत का साक्षात्कार ही करना होता है। परमात्मा ने जगत पर करूणा बरसाते हुए जितना ज्ञान का प्रकाश दिया, वह काल और स्थितियों के थपेडे खाता हुआ कम होता गया। फिर भी आज हमारे पास इतना ज्ञान-प्रकाश मौजूद अवश्य है जिससे हम अपनी क्रिया, चर्या, जीवन, आचरण, दृष्टि को सुधारकर जीवन में नवरस भर सकते हैं। श्रुत गंगा के तल का जल अवश्य कम हुआ है परंतु आज भी वह मीठा है और हमारी प्यास को बुझाने में पूर्णतः समर्थ है, बशर्ते हम उसे कंठ से नीचे उतारने का प्रयत्न करें। आगम ज्ञान में आज भी इतनी शक्ति विद्यमान है कि उससे हम अपनी साधना को सिद्धता के महान् शिखर पर प्रतिष्ठित कर सकते हैं। परमात्मा की देशना का एक मात्र लक्ष्य यही था कि जीव जीव-तत्त्व का स्वरूप समझकर आत्मतुला के सिद्धांत को जीवन में साधने का प्रयत्न करे। आत्मतुला का सिद्धांत आत्मैक्य के धरातल पर विकसित होता है और उसे साधने के लिये बोधपूर्ण शोध अत्यन्त अनिवार्य है। जड और चेतन का भेदविज्ञान समझ लेना ही हमारी समस्त धर्मक्रिया का आधार है। हमारी तपाराधना और साधना का लक्ष्य बिंदु एक ही है कि हम शाश्वत और -