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________________ SAHARSHIT जीव विचार प्रश्नोत्तरी STRESSETTES नारकी सुदेव-सुगुरू-सुधर्म पर श्रद्धा रखने की बजाय कुदेव-कुगुरू और कुधर्म पर आस्था रखते हैं। 2) सम्यक्त्वी नारकी विवेकी एवं सम्यक्-सही दृष्टि वाले होते हैं जबकि मिथ्यात्वी नारकी अविवेकी एवं मिथ्या-गलत दृष्टि वाले होते हैं। 3) सम्यक्त्वी नारकी कर्म निर्जरा एवं पुण्योपार्जन करते हैं जब कि मिथ्यात्वी नारकी पाप कर्म का बंधन करते है। 4) सम्यक्त्वी नारकी वर्तमान में मिल रहे दुःख के लिये स्वयं को उत्तरदायी मानते हैं, स्वयं के कुकृत्यों-कुविचारों का परिणाम मानकर समता-क्षमा से दुःखों को सहन करते हैं जबकि मिथ्यात्वी नारकी क्रोध और कषायपूर्वक दुःखों को सहन करते हैं और उनके लिए सामने वाले को दोषी मानते हैं। 5) मिथ्यात्वी नारकी की श्वान जैसी वृति होती है। जिस प्रकार श्वान/कुत्ता पत्थर मारने वाले की दिशा में दौडने की बजाय पत्थर की दिशा में दौडता है। उसी प्रकार मिथ्यात्वी जीव परिस्थिति/व्यक्ति को ही दोषी ठहराते हैं। स्वयं के कर्म-प्रवृत्ति को न सुधारकर दूसरों पर क्रोध करते हैं जबकि सम्यक्त्वी नारकी की सिंह जैसी वृत्ति होती है। जिस प्रकार सिंह तीर की दिशा में न भागकर तीर चलाने वाले की दिशा में दौडता है, उसी प्रकार सम्यक्त्वी नारकी स्वयं के दुःखों के लिये स्वयं को ही दोषी मानकर पूर्व में किये गये पाप कार्यों की निंदा करते हैं। 248) नरकावासों का विस्तार कैसा है ? उ. कोई ऋद्धिसंपन्न महान् देव तीन चुटकी बजाने जितने समय में एक लाख योजन लम्बे और एक लाख योजन चौडे जम्बूद्वीप की इक्कीस बार प्रदक्षिणा दे सकता है। इतनी महान् शक्ति वाले देव को भी एक नरकावास को पूर्ण वेग से पार करने में एक मास से यावत् छह मास का वक्त लग जाता है। सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नरकावास का अन्त छह माह में प्राप्त होता है / अन्य सीमन्तक आदि नरकावासों को पार करने में इससे भी ज्यादा समय लगता है। 249) नरक में कितने प्रकार की वेदनाएँ होती है ?
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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