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________________ HERE जीव विचार प्रकरण SERIES शब्दार्थ ता - इसलिये संपइ - इस समय संपत्ते - प्राप्त हुआ है मणुअत्ते - मनुष्य भव दुल्लहे - दुर्लभ होते हुए वि-भी सम्मत्ते - सम्यक्त्व सिरि - संति-सूरि-श्री शांतिसूरि सिरि - ज्ञान आदि लक्ष्मी संति - शांति सूरि - पूज्यजनों द्वारा सिटे - उपदिष्ट करेह - करो भो - हे उज्जमं - उद्यम, पुरुषार्थ धम्मे - धर्म में भावार्थ इसलिये इस समय दुर्लभ होते हुए भी मनुष्य जन्म एवं समकित प्राप्त हुआ है तो हे मनुष्यों ! ज्ञानादि लक्ष्मी और शांति संपन्न पूज्यजनों (श्री शांतिसूरि) द्वारा उपदिष्ट धर्म में पुरुषार्थ करो // 50 // विशेष विवेचन सत्ता, संपत्ति, पैसा, परिवार जीव को हर जन्म में मिला है पर परमात्मा का शुद्ध धर्म एवं जीवन का सच्चा मार्ग तो इसी भव में प्राप्त हुआ है। जीव को मनुष्य भव की दुर्लभता बताते हुए ग्रंथकार पू. शांतिसूरीश्वरजी म. सा. कहते हैं- संसार में न साधनों का मिलना बडी बात है, न समृद्धि का / सबसे कठिन है, समकित का मिलना, सही दृष्टि का उपलब्ध होना ।अज्ञानी-मिथ्यात्वी करोडों भव में जितने कर्म काटते हैं, सम्यक्त्वी को उतने कर्मों का क्षय अन्तर्मुहूर्त में ही कर देता है। हे भवि जीव / यह मनुष्य भव चिंतामणि रत्न के तुल्य है / जो इसकी सुरक्षा करना जानता है, वह मुक्तिरमणी को पा लेता है / यह शुद्ध मोक्ष मार्ग इस पंचम आरे में दुर्लभ होते हुए सुलभ हो गया है अत: धर्म में पुरुषार्थ करो / जिन प्ररुपित धर्म में श्रद्धा धरो /
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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