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________________ SREPEARED जीव विचार प्रकरण ARTHRITES आयुष्य कर्म का आत्यंतिक क्षय हो गया है अत: वे आत्मा के अनाम-अरुपी स्वरुप में स्थित होकर अक्षय स्थिति को प्राप्त कर चुके हैं, अत: उनके आयुष्य द्वार भी घटित नहीं होता हैं। स्वकाय स्थिति - संसार का सारे संयोग वियोग में बदलते हैं। हर जन्म में नया शरीर, नयी व्यवस्था प्राप्त होती है पर जिसने एक बार मुक्तालय प्राप्त कर लिया, वह सदा के लिए उसका स्वामी बन जाता है, फिर संसार में आने-जाने की कोई जरुरत नहीं होती है / सिद्धात्मा एक बार अमर-अक्षय स्थिति को प्राप्त करने बाद अनन्तकाल उसी में रमण करता है अत: तीर्थंकर परमात्मा ने सिद्धों की स्थिति सादि अनंत बताई है / एक बार पा लिया तो पा लिया, फिर बिछुडने की कोई गुंजाईश नहीं / प्राण - सिद्ध भगवंतों के नामकर्म एवं आयुष्य का सर्वथा हो जाने के कारण शरीर नहीं है / शरीर नहीं होने के फलस्वरुप प्राण भी नहीं है। . योनि - जन्म-मरण से रहित होने के कारण वे योनि धारण नहीं करते हैं। योनियों की भयंकरता गाथा काले अणाई-निहणे जोणि गहणम्मि भीसणे इत्थ / भमिया भमिहिंति चिरं जीवा जिण-वयण मलहंता // 49 // अन्वय अणाई-निहणे काले जोणि गहणम्मि भीसणे इत्थ जिण वयण मलहंता जीवा चिरं भमिया भमिहिंति // 49 // संस्कृत छाया काले अनादि निधने योनि गहने भीषणोऽत्र / भ्रान्ता भ्रमिष्यन्ति चिरंजीवा जिनवचनमलभमानाः // 49 // शब्दार्थ काले - काल में | अणाई - अनादि निहणे - अनन्त जोणि - योनियों में
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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