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________________ STARTERT जीव विचार प्रकरण A RTISHERE नारकी जीवों से सम्बधित स्वकाय स्थिति का कथन किया गया है / * विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय) जाति के जीव संख्यात वर्षों तक अपनी ही काया (पर्याय) में जन्म लेते हैं और मरते हैं। * पंचेन्द्रिय तिर्यंच एवा मनुष्य सात अथवा आठ भवों तक स्वकाय-स्वपर्याय में जन्म लेते हैं और मरते हैं। प्रश्न - पंचेन्द्रिय तिर्यंच एवं मनुष्य सात अथवा आठ भवों तक जन्म लेते हैं, यह सात अथवा आठ का विकल्प क्यों प्रस्तुत किया गया? - संख्यात वर्ष वाला पंचेन्द्रिय मनुष्य एक साथ सात भव ही मनुष्य के कर सकता है, समाधान-आठवां भव देव अथवा तिर्यंच का ही करता है परन्तु जिसने सातवें भव में असंख्यात वर्ष आयु का बंध किया है, वह मरकर आठवां भव असंख्यात वर्ष वाले युगलिक मनुष्य का करता है / युगलिक मरकर देवगति में ही जाता है। अतः 7/8 से अधिक भव नहीं हो सकते / इसी प्रकार तिर्यंच का भी समझना चाहिये / कोई भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्राणी अधिकतम सात भव ही पंचेन्द्रिय तिर्यंच के लगातार कर सकता है / आठवां भव पाने के लिये युगलिक तिर्यंच (गर्भज) चतुष्पद एवं खेचर का धारण करना होता है क्योंकि उनका ही आयुष्य करोड पूर्व से अधिक होता है, शेष समस्त का मात्र करोड पूर्व का होता है अतः युगलिक गर्भज तिर्यंच जिसकी आयु करोड पूर्व से अधिक हो, वही भव आठवां हो सकता है। * अगला भव तो निश्चित् रूप से देव का ही होता है, उसके बाद तिर्यंच बन सकता है। नारकी और देवता स्वकाय में उत्पन्न नहीं होते हैं। वे मरकर मनुष्य या तिर्यंच गति में ही जाते हैं। देव मरकर न देव बन सकता है, न नारकी। उसी प्रकार नारकी मरकर देवलोक और नरक में नहीं जा सकता है /
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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