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________________ SASTERSTARSHAN जीव विचार प्रकरण LISTRATION शब्दार्थ धणु - धनुष सय - सौ, शत पंच - पांच पमाणा - प्रमाण नेरइया - नारकी जीवों का (शरीर) सत्तमाइ - सातवीं पुढवीए - पृथ्वी में तत्तो - वहाँ से अद्धभूणा - आधा-आधा कम | नेया - समझना, जानना .. रयणप्पहा - रत्नप्रभा (नरक) पृथ्वी | जाव - तक .. भावार्थ सातवीं नरक के जीवों की अवगाहना पांच सौ धनुष प्रमाण की होती है। वहाँ से रत्नप्रभा नरक पृथ्वी तक आधी-आधी समझनी चाहिये // 29 // विशेष विवेचन इस गाथा में अवगाहना द्वार के अन्तर्गत नरक के जीवों का विवेचन किया गया है / धनुष्य किसे कहते है ? चार हाथ के प्रमाण को धनुष्य कहते है। नारकी जीवों की अवगाहना 1) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी - 7 धनुष्य 78 अंगुल 2) शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकी 15 धनुष्य 60 अंगुल 3) वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकी 31 धनुष्य 24 अंगुल 4) पंकप्रभा पृथ्वी के नारकी 62 धनुष्य 48 अंगुल 5) धूमप्रभा पृथ्वी के नारकी 125 धनुष्य 00 अंगुल 6) तम:प्रभा पृथ्वी के नारकी 250 धनुष्य 00 अंगुल 7) तमस्तमः प्रभा पृथ्वी के नारकी 500 धनुष्य 00 अंगुल इस प्रकार प्रथम नरक की अपेक्षा दूसरी नरक के नारकी जीवों की अवगाहना दुगुनी होती है / दूसरी नरक के नारकी जीवों की अपेक्षा तीसरी नरक के नारकी जीवों की -
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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