SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत-अनुवाद त्रीण्यज्ञानानि, ज्ञानानिपञ्च, चत्वारिदर्शनानिद्वादश . जीवलक्षणोपयोगाः / एतेद्वादश उपयोगाभणितास्त्रैलोक्यदर्शिभिः||२३|| अन्वय सहित पदच्छेद तिअनाण,पणनाण,चउदंसण,बारजिअलक्खणउवओगा इयबारसउवओगातेलुक्कदंसिटिंभणिया॥२३॥. .. शब्दार्थ जिअ-जीव के तेलुक्क-तीनलोक (तीन जगत का) लक्खण-लक्षणरूप दंसिहीं-दर्शिता ने इय-ये, पूर्वोक्त देखनेवालो ने '५नवालान गाथार्थ तीन अज्ञान, पांचज्ञान और चार दर्शन ये 12 जीव के लक्षणरूप उपयोग है। ये बारह उपयोग तीन जगत के पदार्थ देखनेवाले श्री जिनेश्वर भगवंत ने कहा है। गाथा उवओगा मणुएसुबारस,नव निरय तिरियदेवेसु। विगलदुगेपण, छक्कं चरिंदिसु,थावरेतियगं||२४|| संस्कृत अनुवाद उपयोगा मनुजेषुद्वादश, नवनैरयिकतिर्यग्देवेषु। विकलद्रिकेपञ्च, षट्कं चतुरिन्द्रियेषुस्थावरेत्रयः॥२४|| अन्वय-सहित पदच्छेद मणुएसुबारस उवओगा निरय तिरिय देवेसुनव। विगलदुगेपण, चउरिंदिसुछक्कं,थावरेतियगं॥२४|| | दंडक प्रकरण सार्थ (82) उपयोग द्वार
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy