________________ यहां एक जीव को लेकर समकाल में एक साथ किसी को अचक्षुदर्शन अथवा केवल दर्शन होता है इन दो में से एक होता है। किसी को अचक्षु और चक्षु ये दो दर्शन है किसी को इन दोनों के साथ अवधि सहित तीन दर्शन होते है। .. // 24 दंडक में 4 दर्शन॥ 5 स्थावर को 1 . 1 चुतरिन्द्रिय को 2 (च.अच.) 1 द्वीन्द्रिय को 1 (अचक्षु) 1 ग. मनुष्य को 4 . 1 त्रीन्द्रिय को 1 15 शेष में 3 (केवल बिना) 12 ज्ञान और 13 अज्ञान द्वार गाथा . अन्नाणनाणतिय तिय,सुरतिरिनिरए, थिरेअन्नाणदुर्ग नाणान्नाणदुविगलेमणुएपणनाणति अनाणा॥२०॥ / संस्कृत अनुवाद अज्ञानज्ञान (योः) त्रिकं त्रिकंसुरतिर्यग्रयिकेषु.स्थिरे अज्ञान द्विकं। ज्ञानाज्ञानद्रिकं विकले, मनुजे पंचज्ञानानि त्रीण्यज्ञानानि // 20 // अन्वय सहित पदच्छेद सुरतिरिनिरएतिय अनाण, नाण थिरेदुगंअनाण विगलेदुनाणअन्नाण, मणुएपणनाणति अनाणा ||20|| शब्दार्थ दुगं-दो थिरे -स्थावर में नाण-ज्ञान अन्नाण-अज्ञान दु-बे | दंडक प्रकरण सार्थ (76) ज्ञान - अज्ञान द्वार