________________ -||24 दंडक में ७समुद्घात॥ 1 ग.मनुष्य को-७ 1 नरक को-४ 1 ग. तिर्थंच को-५ 1 वायु को-४ 13 देवदंडक मे-५ / 7 शेष दंडक मे-३ 10 वां दृष्टिद्वार विकलेन्द्रिय को मिथ्यात्व और सम्यक्त्व ये दो दृष्टि है मिथ्यात्व दृष्टि सभी विकलेन्द्रिय को सभी अवस्था में है। लेकिन सम्यक्त्व दृष्टि तो सास्वादन सम्यक्त्व वाला कोई जीव अन्य स्थान से आकर विकलेन्द्रिय में उत्पन्न हुआ हो, उस समय अपर्याप्त अवस्था हो तब होती है और पर्याप्त अवस्था में तो अवश्य मिथ्यादृष्टि ही होती है। __ तथा स्थावर के पांचों दंडक में 1 मिथ्यादृष्टि ही होती है और शेष 16 दंडक के जीव मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और मिश्र ये तीने दृष्टिवाले होते है, हरेक दंडक में कौनसे-कौनसे जीव कौन-कौनसी दृष्टिवाले कब कब होते है उनका विचार अन्य ग्रंथ से जान लेना। 24 दंडक में 3 दृष्टिद्वार (1) 5 स्थावर को 1 मिथ्यादृष्टि। 3. विकलेन्द्रिय को - 2 मिथ्यात्व और सम्यक्त्व। 16 शेषदंडक में - 3 दृष्टि-मिथ्यात्व, मिश्र, सम्यक्त्व / फूटनोट : . (९)कर्मग्रंथ के अभिप्राय अनुसार तो बादर पृथ्वीकाय, अप्काय, और प्रत्येक वन में भी सास्वादन सम्यक्त्व कहा है इसलिए स्थावर को 3 दंडक में 2 दृष्टि और 2 दंडक में 1 दृष्टि कह सकते है लेकिन सिद्धांत में सब एकेन्द्रिय को सास्वादन सम्यक्त्व का अभाव कहा हुआ होने से इन पांचों दंडक में एक मिथ्यादृष्टि ही है। दंडक प्रकरण सार्थ (73) दृष्ठि द्वार |