________________ गाथार्थ एकेन्द्रिय को केवलि, तैजस, और आहारक बिना चार समुद्घात होते है, और वैक्रिय समुद्घात बिना वही तीन विकलेन्द्रिय को होते है और संज्ञि पंचेन्द्रिय को वही (सात) समुद्घात होते हैं। विशेषार्थ एकेन्द्रियों को केवलि, तेजस, और आहारक ये तीन समुद्घात बिना शेष 4 समुद्घात है (वायुकाय की अपेक्षा से है।) वायुकाय के बिना पृथ्वीकायादि चार एकेन्द्रिय को तथा विकलेन्द्रिय को वैक्रियसमुद्घात बिना तीन समुदघात होते हैं और संज्ञि पंचन्द्रिय को तो सातों समुद्घात होते हैं। पुनः लोक के पर्यन्तंभाग पर निराबाध स्थान पर रहे हुए सूक्ष्मादि एकेन्द्रिय को तथा प्रकार के उपघात का अभाव होने से वेदना समुद्घात रहित 2 (दो) समुद्घात भी होते हैं और शेष सभी सूक्ष्म तथा बादर एकेन्द्रिय को तीन समुद्घात होते हैं। गाथा १०वां दृष्टि द्वार पण गब्भतिरिसुरेसु, नारयवाउसुचउर, तियसेसे विगल दुदिद्विथावर, मिच्छत्ति,सेसतिय दिट्ठी॥१८॥ संस्कृत अनुवाद पञ्चगर्भजतिर्यकसुरयो-नारकवाय्वोःश्चत्वारस्त्रयःशेषेषु विकले द्वेदृष्टि स्थावरेमिथ्येतिशेषेसुतिसोदृष्टयः॥१८॥ अन्वय सहित पदच्छेद गब्भ तिरिसुरेसुपण, नारयवाऊसुचउर, सेसेतिय विगलदुदिट्ठीथावर, मिच्छत्ति,सेसे तिय दिट्ठी॥१८॥ - दंडक प्रकरण सार्थ 71 दृष्ठि द्वार