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________________ उसमें भी नरको का हुंडक संस्थान पंख उखडे हुए पक्षी समान अति बिभत्स और भयानक होता है। गाथा नाणाविह-धयसूई-बुब्बुयवणवाउते अपकाया,। पुढवी मसूरचंदा-कारासंठाणओभणिया|१३|| संस्कृत अनुवाद नानाविधध्वजसूचीबुदबुदा, वनवायुतैजसापकायिकाः। पृथ्वी मसूरचन्द्राकारासंस्थानतोभणिता॥१३॥ अन्वय सहित पदच्छेद संठाणयओवणनाणाविह, वाउधय, तेउसूई,अपकाया। बुब्बुयपुढवी मसूरचंदआकाराभणिया||१३|| .. शब्दार्थ नाणाविह-भिन्न भिन्न प्रकार के / अपकाया-अप्काय (जल) (अनेक प्रकार के आकार वाले) | पुढवी-पृथ्वीकाय धय-ध्वज (के आकारवाले) मसूर-मसूर की दाल(के आकारवाले) सूई-सोय/सूई चंदाकारा-अर्ध चन्द्र के आकारवाला बुब्बुय-परपोटे, बुद्बुद संठाणओ-संस्थान से, आकार से वण-वनस्पति भणिया-कहे है। तेउ-अग्निकाय गाथार्थ _ संस्थान से वनस्पतिकाय, वायुकाय, तेउकाय और अप्काय के अनुक्रम से अलग-अलग अनेक आकारवाले, ध्वजाके आकारवाले, सूई के आकारवाले, और परपोटेके आकारवाले, तथा पृथ्वीकाय मसूर की दाल के आकारवाले या अर्धचन्द्र के आकारवाले हैं। | दंडक प्रकरण सार्थ (62) संस्थान द्वार चालु
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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