________________ संस्कृत अनुवाद अन्तर्मुहुर्त नैरयिके, मुहुर्ताश्चत्वारः तिर्यगमनुजेषु। देवेष्वर्धमास उत्कृष्टो विकुर्वणाकालः||१०|| अन्वय सहित पदच्छेद निरए अंतमुहुतं तिरिय-मणुएसुचत्तारिमुहुत्त। . देवेसुअदमासो, उक्कोस विउव्वणा कालो॥१०॥ शब्दार्थ :अंतमुहूत्त-अन्तर्मुहूर्त मुहुत्त-मुहूर्त (2 घडी) चत्तारि-चार अद्ध मासो-अर्धमास, 15 दिन विउव्वणा-विकुर्वणा | कालो-काल गाथार्थ : नरक में अंतर्मुहूर्त, (१)तिर्यंच और मनुष्य में 4 मुहूर्त, और देवों में आधामास, उत्कृष्ट विकुर्वणा का काल है। विशेषार्थ कहा हुआ यह काल पूर्ण होने पर उत्तर वैक्रिय शरीर अपनेआप नष्ट हो जाता है। काल के पहले इस शरीर की जरूरत न हो तो बुद्धिपूर्वक संहरण भी किया जाता है। वायुकाय में रचना और विलय अपने आप होता रहता है। फूटनोट : (१)दंडक प्रकरण की अवचूरी में (इस प्रकरण के कर्ता ने) लब्धि से किया गया वैक्रिय शरीर (गर्भज तिर्यंच, मनुष्य) का अवस्थान काल अंतर्मुहूर्त से ज्यादा नहीं हो सके ऐसा स्पष्ट निर्देश किया है। यहां पर 4 मुहूर्त कहा है। दिगम्बर आम्नाय में (परम्परा में) भी अंतर्मुहूर्त काल कहा है। श्री भगवती सूत्र में भी अंतर्मुहूर्त काल कहा है। यह गाथा श्री जीवाभिगम सूत्र की है। // दंडक प्रकरण सार्थ (५६)उत्तर वैकिय का विकुर्वणा का काल