________________ गाथा गब्भतिरिसहसजोयण, वणस्सईअहियजोयणसहस्सं नरतेइंदितिगाउ, बेइंदिअजोयणेबार||७|| संस्कृत अनुवाद गर्भजतिर्यञ्चःसहायोजना,वनस्पतिरधिकयोजनसहस्त्रम नरस्त्रीन्द्रियास्त्रिगव्यूता, द्वीन्द्रियायोजनानिद्वादश॥७॥ शब्दार्थ : सहस-हजार जोयण-योजन अहियं-कुछ ज्यादा ति-त्रण गाऊ-गाऊ, कोस अन्वय सहित पदच्छेद गन्मतिरिसहसोयण, वणस्सईजोयणसहस्संअहियं नर-तेइंदितिगाउ, बेइंदियबारजोयणे॥७॥ गाथार्थ : गर्भज तिर्यंच हजार योजन है, वनस्पति हजार योजन से कुछ अधिक है, गर्भज मनुष्य और त्रीन्द्रिय तीन गाउ और द्वीन्द्रिय बारह योजन है। ___ सिद्धांतों में तथा-प्रकरण ग्रंथो में उत्कृष्ट अवगाहना 1-2 देवलोक की 7 हाथ, 34 की 6 हाथ की, 5-6 की 5 हाथ, 7-8 की 4 हाथ, 9-10-11-12 की 3 हाथ, नवग्रैवेयक की 2 हाथ, और अनुत्तर, सर्वार्थ सिद्ध की 1 हाथ कही है वह उत्कृष्ट आयुवाले देवों को इनसे न्यून न होने की अपेक्षा से (वास्तविक रूप से तो वह जघन्य ही ) सामान्यतः कहीं है / और वास्तविक रूप से सोचने पर तो उपर कहे अनुसार ही जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना प्रकरणों में और सिद्धान्तों में आयुष्य के अनुसार ही कही है। | दंडक प्रकरण सार्थ (49) अवगाहनाद्वार