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________________ बादर अग्निकाय असंख्यगुणा बडा, उससे बादर अपकाय असंख्यगुणा बडा, उससे बादर पृथ्वीकाय असंख्यगुणा बडा, उससे बादर निगोद असंख्यगुणा बडा, उससे बादर प्रत्येक वनस्पति असंख्यगुणा बडा, (1000 योजन से भी अधिक) गाथा सव्वेसिंपिजहन्ना, साहाविय अंगुलस्सऽसंखंसा। उक्कोसपणसयधणू, नेरइयासत्तहत्थसुरा|६|| संस्कृत अनुवाद सर्वेषामपिः-जघन्यास्वाभाविकीअइगुलस्यासंख्येयांशाः। उत्कृष्टतःपञ्चशतधनुष्कानैरयिकाःसप्तहस्ताःसुराः॥६ शब्दार्थ :सव्वेसिं-सभी दंडकों में उक्कोस-उत्कृष्ट से जहन्ना-जघन्य अवगाहना पणसय-पांचसो साहाविय-स्वाभाविक (मूल-शरीर संबंधी) | धणू-धनुष्य अंसा-भाग सुरा-देवो अन्वय सहित पदच्छेद सवेसिंपिसाहावियजहन्नाअंगुलस्सअसंखंसा। नेरइआउक्कोसपणसयधणूसुरासत्त-हत्य||६| गाथार्थ ___ सभी दंडको में स्वाभाविक शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवा भाग जितनी है। नरक की उत्कृष्ट अवगाहना पांचसो धनुष्य की है। देवों की सात हाथ होती है। | दंडक प्रकरण सार्थ अवगाहनाद्वार
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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