________________ आने की वजह से तीन दिशा का ही आहार प्राप्त कर सकते है। इस तरह कोन में रहे हुए दानों की बाजु में नहीं ऊपर के भाग में अंतिम हार में रहे दाने को चार दिशा का आहार मिलेगा, क्योंकि उनकी एक और ऊपर के हार के दो बाजु दो और पीछे के हार के एक तथा नीचे के हार का अंतिम एक दाने के पास में आये है। सामने की ओर और ऊपर की ओर डिब्बा का पतरा आने की वजह से चार दिशा का आहार मिलता है। अब उसी ऊपर के भाग की अंतिम हार (श्रेणि) में रहे हुए दूसरे दाने के पास का दाना लो, उसके दोनों ओर एक-एक दाना है और अन्य दो बाजु पर दो हार है उसको एक-एक दानेका स्पर्श है। सिर्फ ऊपर की ओर डिब्बे का पतरा का स्पर्श है इस तरह इसके पांचो ओर, पांच दाने होने की वजह से पांच दिशा का आहार मिलता है। अब पांचो ओर राई के दाने आने की वजह से उसके नीचे के दाने की बाजु में छह दाने होने से नीचे के दाने को छह दिशा का आहार मिलता है। इस प्रकार चौदह राजलोक के अंतभाग में तथा कोने में आये हुए जीव को 3-4-5 दिशा का आहार मिलता है और बीच में रहे हुए जीव को छह दिशा का आहार मिलता है। चौदह राजलोक में इसी तरह आकाश प्रदेश भरे हुए है और उसकी छह दिशाओं में श्रेणियां है। लोक के बाहर अलोक है। कितने को लोकाकाश के अंतिम आकाश प्रदेशो के ऊपर रहे हुए जीवों को एक ओर से, कितने को दो ओर से, और कितने को तीन ओर से अलोक का स्पर्श होता है। इसलिए उस दिशाओं का आहार मिल नहीं सकता। और स्थावर जीवों को 3-4-5-6 दिशाओं का आहार मिलता है। | दंडक प्रकरण सार्थ (38) . किमाहार द्वार