________________ 10. दृष्टिद्वार-३ हरेक प्राणी सभी पदार्थो को भिन्न-भिन्न प्रकार से ध्यान (ख्याल) में लेते है। ख्याल में लेने की पद्धति को दृष्टि कहते है। 'दृश्यते यया सा दृष्टिः' वह तीन प्रकार की है। 1) मिथ्यादृष्टि :- गलत आभास, ख्याल / जो पदार्थ जैसा हो उससे भिन्न प्रकार का ही ख्याल। जैसे शराब पीया हुआ आदमी माता को स्त्री और स्त्री को माता समझता है, इस तरह मिथ्यात्व मोहनीय कर्म रूपी मदिरा के उन्माद से जिसका विवेक नष्ट हुआ है ऐसे विवेक विफल जीव सत् पदार्थ को असत् और असत् पदार्थ को सत् समझते है, धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म मानते है या धर्म को मानते ही नहीं / इस तरह पदार्थ जो स्वरूप में है उस स्वरूप में न समझकर विपरीत ही समझें। उस दृष्टि का नाम मिथ्यादृष्टि। 2) सम्यग्दृष्टि :- सच्चा ख्याल या भास होना, वह मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षय, क्षयोपशम और उपशम से होता है, उसके प्रभाव से सभी पदार्थ जिस स्वरूप में है उसी स्वरूप में समझें। जैसे कि सत् को सत् रूप में माने और असत् को असत् रूप में माने उसे सम्यग्दृष्टि कहते है। ____3) मिश्रदृष्टि :- कुछ सही और कुछ गलत ख्याल होना, वह मिश्रदृष्टि / मिश्र मोहनीय कर्म के उदय से वस्तु तत्व को समझने में मध्यस्थ रहे अर्थात् सर्वज्ञ के कहे हुए तत्व के प्रति रूचि भी नहीं. और.अरुचि भी नही; उस दृष्टि का नाम मिश्रदृष्टि। 11. दर्शन-४ पदार्थ में रहे हुए सामान्य और विशेष धर्म में से सिर्फ सामान्य धर्म जानने की, आत्मा की जो शक्ति है उसे दर्शन कहा जाता है। वह दर्शन चार प्रकार का है। | दंडक प्रकरण सार्थ (30) दृष्ठि और दर्शन द्वार