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________________ 1. औदारिक :- उदार वह औदारिक शरीर, उदार याने विशाल, उदारगुण, उत्तम, स्थूल, ऊंचा। 1. विशाल :- इस शरीर की विशालता इस तरह है कि यह देव और नरक के अलावा सभी जीवों को होता है। यह शरीर तीर्थंकर भगवंत को, चक्रवर्ती, गणधर, केवलि-महाराज, वासुदेव, बलदेव, प्रतिवासुदेव, नारद, रुद्र आदि महापुरुषों को भी होने से विशाल गुण धारण करता है। 2. उदारगुण :- मोक्ष और अनंत लब्धि भी इस शरीर के द्वारा ही प्राप्त होती है। 3. उत्तम :- अन्य चार शरीरों की अपेक्षा यह शरीर रचना, सुंदरता और कांति के बारे में उत्तमता धारण करता है। 4. स्थूल :- आठ ग्रहण करने योग्य वर्गणाओं में से औदारिक शरीर रूप मे से ग्रहण करने योग्य वर्गणा में पुद्गल परमाणु कम होते है लेकिन उनका परिणाम स्थूल होता है। ऐसी स्थूल वर्गणा से बना हुआ होने से स्थूल कहा जाता है। 5. ऊंचा-बड़ा :- अन्य शरीर की स्वाभाविक ऊंचाई से औदारिक शरीर की ऊंचाई सबसे ज्यादा है। याने हजार योजन से भी कुछ ज्यादा ऊंचाई होती है। 2. वैक्रिय शरीर :- विक्रियावाला जो होता है वह वैक्रिय। विक्रिया याने भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियाएँ, जैसे की छोटे से बड़ा होना, बड़े से छोटा होना, एक का अनेक, पृथ्वी पर फिरने वाला, आकाश में उडनेवाला, भारी हल्का, दृश्य, अदृश्य आदि विविध प्रकार की क्रियावान होना अथवा विशिष्ट अद्भुत क्रियाएँ जैसे लाख योजन से भी कुछ अधिक ऊंचाईवाला बन सकता है। और देवों के सौंदर्य की अपेक्षा से भी अद्भुत है। यह शरीर औदारिक शरीर से कुछ ज्यादा सूक्ष्म पुद्गलों की वर्गणाओं से बनता है। उसकी रचना स्वाभाविक रूप से होती है। लेकिन औदारिक शरीर की तरह सात धातुओं से नहीं होती है। | दंडक प्रकरला सार्थ (12) पयोगी व्याख्याए
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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